प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के चुनाव से पहले विपक्षी दलों की एकता को महामिलावट कहा था। लेकिन हकीकत उलटी है। भाजपा महामिलावट की तरफ बढ़ रही है और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल को छोड़कर अन्य में बड़े राजनीतिक दल के साथ कोई राजनीतिक गठबंधन नहीं चाहते। महाराष्ट्र में डीएमके, महाराष्ट्र में एनसीपी, आंध्र प्रदेश में टीडीपी, बिहार में राजद, रालोसपा, हम के साथ बनने वाला महागठबंधन, झारखंड में झामुमो, राजद अन्य, पश्चिम बंगाल में वाम दल, कर्नाटक में जद(एस) के साथ ही चुनाव पूर्व तालमेल की संभावना है।
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का नेशनल कांफ्रेस से तालमेल बना हुआ है। इसके आगे भी बने रहने के संकेत हैं। बताते हैं कांग्रेस अध्यक्ष की टीम का लगातार उत्साह बढ़ रहा है और पार्टी के नेता तालमेल के बहुत पक्ष में नहीं हैं। दिल्ली में शीला दीक्षित की राय को अहमियत देकर कांग्रेस अध्यक्ष ने आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव पूर्व तालमेल पर फिलवक्त विराम लगा दिया है।
उत्तर प्रदेश में भी एक सीमा के बाद कांग्रेस ने अपने पैरों पर खड़ा होने का फैसला ले लिया। इसी तरह से पंजाब में भी चुनाव पूर्व तालमेल को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की सलाह को अहमियत दी। कैप्टन किसी भी सूरत में आम आदमी के साथ तालमेल के पक्ष में नहीं थे। पार्टी का करीब-करीब यही रुख हर राज्य में रहने वाला है। बताते हैं इसको ध्यान में रखकर केंद्रीय चुनाव समिति ने टिकट बंटवारे के काम को आगे बढ़ा दिया है।
जहां हो जरूरत करो छोटी पार्टी से तालमेल
उत्तर प्रदेश इसकी पहली प्रयोगशाला बन सकता है। कांग्रेस यहां कुछ छोटे दलों के साथ तालमेल कर सकती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके जरिए एक सोशल इंजीनियरिंग कर रहे हैं। इसके अंतर्गत छोटे दलों, वर्गों, संप्रदायों, समाज के प्रभावशाली लोगों के साथ जुड़कर बड़ा राजनीतिक संदेश देने की तैयारी है। प्रियंका गांधी और सिंधिया ने बतौर कांग्रेस महासचिव उत्तर प्रदेश के पहले दौरे के दौरान कुछ छोटे दलों से भेंट मुलाकात की थी। कुछ से लगातार संपर्क का सिलसिला चल रहा है।
इसी क्रम में प्रियंका ने भीम पार्टी के नेता चंद्रशेखर से भी मुलाकात की है। इसी तरह से निषाद पार्टी समेत कई छोटे-छोटे दलों के लोग कांग्रेस नेता से मिलने के प्रयास में हैं। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में करीब 50 सीटों को मुख्य केंद्र में रखकर पार्टी 60 से अधिक उम्मीदवार उतार सकती है। फिलहाल अभी 11 उम्मीदवारों की ही घोषणा हुई है। पार्टी ने यह प्रयोग पूर्वोत्तर के राज्यों समेत अन्य में मिले अनुभव के आधार पर अपनाया है।
उत्तर प्रदेश में भी एक सीमा के बाद कांग्रेस ने अपने पैरों पर खड़ा होने का फैसला ले लिया। इसी तरह से पंजाब में भी चुनाव पूर्व तालमेल को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की सलाह को अहमियत दी। कैप्टन किसी भी सूरत में आम आदमी के साथ तालमेल के पक्ष में नहीं थे। पार्टी का करीब-करीब यही रुख हर राज्य में रहने वाला है। बताते हैं इसको ध्यान में रखकर केंद्रीय चुनाव समिति ने टिकट बंटवारे के काम को आगे बढ़ा दिया है।
जहां हो जरूरत करो छोटी पार्टी से तालमेल
उत्तर प्रदेश इसकी पहली प्रयोगशाला बन सकता है। कांग्रेस यहां कुछ छोटे दलों के साथ तालमेल कर सकती है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया इसके जरिए एक सोशल इंजीनियरिंग कर रहे हैं। इसके अंतर्गत छोटे दलों, वर्गों, संप्रदायों, समाज के प्रभावशाली लोगों के साथ जुड़कर बड़ा राजनीतिक संदेश देने की तैयारी है। प्रियंका गांधी और सिंधिया ने बतौर कांग्रेस महासचिव उत्तर प्रदेश के पहले दौरे के दौरान कुछ छोटे दलों से भेंट मुलाकात की थी। कुछ से लगातार संपर्क का सिलसिला चल रहा है।
इसी क्रम में प्रियंका ने भीम पार्टी के नेता चंद्रशेखर से भी मुलाकात की है। इसी तरह से निषाद पार्टी समेत कई छोटे-छोटे दलों के लोग कांग्रेस नेता से मिलने के प्रयास में हैं। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में करीब 50 सीटों को मुख्य केंद्र में रखकर पार्टी 60 से अधिक उम्मीदवार उतार सकती है। फिलहाल अभी 11 उम्मीदवारों की ही घोषणा हुई है। पार्टी ने यह प्रयोग पूर्वोत्तर के राज्यों समेत अन्य में मिले अनुभव के आधार पर अपनाया है।