सिख दंगों को लेकर राजीव गांधी के सलाहकार रहे सैम पित्रोदा के बयान 'जो हुआ सो हुआ' के बाद पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने इस आग में घी डालने का काम किया है। उन्होंने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया है कि 1984 में सिख दंगा नहीं राजीव गांधी के आदेश पर उनके चुने हुए विश्वास पात्र कांग्रेसी नेताओं द्वारा खुद खड़े होकर कराया गया नरसंहार था।
1980 बैच के आईपीएस और उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे सुलखान सिंह ने लिखा है कि 'इंदिरा गांधी की हत्या के दिन 31 अक्तूबर 1984 को मैं पंजाब मेल ट्रेन से लखनऊ से वाराणसी जा रहा था।
ट्रेन अमेठी स्टेशन पर खड़ी थी, उसी समय एक व्यक्ति जो वहीं से ट्रेन में चढ़ा था, उसने बताया कि इंदिरा गांधी को गोली मार दी गई। वाराणसी तक कहीं कोई बात नहीं हुई। वाराणसी में भी अगले दिन सुबह तक कुछ नहीं हुआ।
उसके बाद योजनाबद्ध तरीके से घटनाएं की गईं। अगर जनता के गुस्से का 'आउट बर्स्ट' होता तो दंगा फौरन शुरू हो जाता।' सुलखान सिंह का दावा है कि बाकायदा योजना बनाकर नरसंहार शुरू किया गया। उन्होंने तत्कालीन कांग्रेसी नेता भगत, टाइटलर, माकन, सज्जन कुमार मुख्य ऑपरेटर थे।
राजीव गांधी के खास विश्वासपात्र कमलनाथ मॉनिटरिंग कर रहे थे। उन्होंने आगे लिखा है कि नरसंहार पर राजीव गांधी का बयान और उन सभी कांग्रेसियों को संरक्षण के साथ-साथ अच्छे पदों पर तैनात करना उनकी संलिप्तता के जनस्वीकार्य सबूत हैं। राजीव गांधी की मृत्यु के बाद भी कांग्रेस सरकारों द्वारा इन व्यक्तियों को संरक्षण तथा पुरस्कृत करवाए इन सबकी सहमति दर्शाता है।
उधर, कानपुर में हुए सिख दंगों की जांच के लिए गठित एसआईटी के प्रमुख पूर्व डीजीपी अतुल ने कहा है कि अगर सुलखान सिंह के पास ऐसा कोई सुबूत है तो वह सरकार के सामने या फिर सीधे एसआईटी के सामने आ कर अपना पक्ष रखें। इस बारे में सुलखान सिंह का पक्ष जानने के लिए उनसे बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।