ऐसा लगता है कि आज हर कोई चांद पर पहुंचना चाहता है। विगत जनवरी में एक चीनी रोबोटिक अंतरिक्ष यान चेंज-4 ने एक छोटे रोवर के साथ चांद के सुदूर किनारे पर उतरकर इतिहास रचा। भारत ने आज से अपना महत्वाकांक्षी चंद्र अभियान चंद्रयान-2 की शुरुआत की है। इस्राइल से भी इसी साल एक छोटा रोबोटिक लैंडर चंद्र अभियान पर निकला था, लेकिन वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
आने वाले दशकों में इन और दूसरे देशों के भी पर्यटक चांद की सतह पर कदम रख सकते हैं। चीन हालांकि इस मामले में थोड़ा सुस्त रुख अपना रहा है, लेकिन अगले पच्चीस साल में अपने अंतरिक्ष यात्रियों को वहां उतार सकता है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने 2050 तक चांद पर 'मून विलेज' शुरू करने की योजना बनाई है। रूस ने भी 2030 तक चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का लक्ष्य रखा है, हालांकि बहुतों को संदेह है कि इसकी लागत को देखते हुए रूस अपने इस अभियान से हाथ भी खींच सकता है।
1968 से 1972 तक चांद की तरफ 24 अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने वाले अमेरिका की प्राथमिकता इस मामले में कांग्रेस और उसके राष्ट्रपतियों की मर्जी पर निर्भर करती है। लेकिन विगत फरवरी में उप-राष्ट्रपति माइक पेन्स की इस घोषणा से, कि अमेरिकी 2024 में, जो उसके प्रारंभिक लक्ष्य से चार साल पहले है, चांद पर होंगे, पता चलता है कि चांद किस तरह अब नासा की प्राथमिकता में है। ट्रंप द्वारा नासा के नए प्रशासक चुने गए जिम ब्रिडेनस्टाइन कहते हैं, 'चांद के मामले में हमारा अभियान अब बिल्कुल स्पष्ट है।'
चंद्रयान-2 का चांद की सतह पर पहुंचना भारत की तकनीकी प्रगति को रेखांकित करेगा। जबकि चीन इस मामले में वैश्विक ताकत बनना चाहता है। ऐसे ही अमेरिका और नासा के लिए अपने मंगल अभियान में चांद एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। चांद के प्रति यह आकर्षण सिर्फ राष्ट्रों तक सीमित नहीं है।