महाराष्ट्र विधानसभी चुनावों के शुरुआती रुझान आने शुरू हो गए हैं। इनमें साफ हो रहा है कि 2014 के मुकाबले इस बार भाजपा की सीटों में गिरावट स्पष्ट दिखाई दे रही है। वहीं शिवसेना और एनसीपी बढ़त बनाए हुए हैं। हालांकि महाराष्ट्र में सरकार एनडीए की बनने जा रही है, लेकिन भाजपा इन चुनावों में उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं कर पाई, जितनी की उम्मीद जताई जा रही थी।
कमजोर हुए भाजपा के मुद्दे
2014 चुनावों में भाजपा को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिली थी, जबकि एनसीपी को 41 और कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। वहीं इस बार नुकसान सीधे-सीधे भाजपा को उठाना पड़ रहा है। जबकि क्षेत्रीय दल शिवसेना और एनसीपी फायदे में दिख रहे हैं। महाराष्ट्र चुनावों में भाजपा मराठा आऱक्षण, किसान कर्जमाफी, सुशासन, तीन तलाक और अनुच्छेद 370 को मुद्दा बना कर इन चुनावों में उतरी थी। लेकिन मौजूदा रुझानों से स्पष्ट लग रहा है कि विपक्षी दलों की तरफ से उठाए गए स्थानीय मुद्दों के सामने भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दे कमजोर नजर आए। प्रधानमंत्री मोदी ने भी महाराष्ट्र चुनावों में ताबड़तोड़ रैलियां की और जमकर विपक्ष पर निशाना साधा।
वीर सावरकार को भारत रत्न देने का दांव
प्रधानमंत्री मोदी ने सतारा रैली में विरोधियों पर बरसते हुए अनुच्छेद 370 और राफेल मुद्दों पर विफक्ष पर निशाना साधा और दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया। वहीं महाराष्ट्र चुनाव में शिवसेना ने वीर सवारकर को भारत रत्न देने की मांग भी उठाई और भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में सावरकार को यह सम्मान देने का वायदा भी किया। यहां तक कि अपने घोषणापत्र में भाजपा ने राज्य की अर्थव्यवस्था एक हजार अरब डॉलर पहुंचाने और एक करोड़ लोगों को रोजगार देने और साल 2022 तक सभी को घर देने जैसे लुभावने वायदों का दांव भी चला। लेकिन विपक्ष के मुद्दों के सामने भाजपा के ये दावे कमजोर ही रहे।
चांद पर राकेट भेजने से नहीं भरता पेट
वहीं भाजपा के इन मुद्दों के जवाब में विपक्षी दलों ने भी कमर कसते हुए और भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दों की हवा निकालने में जुट गए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में महाराष्ट्र की फड़नवीस सरकार पर बेरोजगारी, नोटबंदी के दुष्प्रभावों, जीएसटी और पीएनबी घोटाले को मुद्दा बनाया। राहुल में अपनी रैलियों में यहां तक कहा कि चांद पर राकेट भेजने से युवाओं का पेट नहीं भरता। वहीं एनसीपी ने औद्योगिक घाटे, बुनियादी ढांचे, बेरोजगारी औऱ आर्थिक मंदी को अपने भाषणों में शामिल किया। वहीं किसानों की आत्महत्या और मराठा आरक्षण को लेकर भी विपक्ष भाजपा पर आक्रामक दिखा।
मराठा आरक्षण का नहीं दिखा चमत्कार
महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या एक बड़ा मुद्दा है और पिछले चार सालों में 12 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। वहीं मराठवाड़ा, विदर्भ और पश्चिमी महाराष्ट्र में कृषि संकट बड़ा मुद्दा रहा है, जो भाजपा-शिवसेना गठबंधन के खिलाफ जा रहा था। भाजपा-शिवसेना गठबंधन में मराठी लोगों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने का वायदा किया था। सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने के फैसले के बाद इसे भाजपा के बड़े फैसलों में से माना जा रहा था। जिसका फायदा उसे 2019 के लोकसभा चुनावों में भी मिला था।
पीएमसी घोटाला पड़ा भारी
लेकिन आखिरी वक्त में पुणे महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक के खाताधारियों की मौतों ने हालात को पलट दिया। उलटे सरकार पर ही आरोप लगे कि सरकार इतने साल से आंखें मूद कर बैठी रही और चुनावी वक्त में उस पर प्रतिबंध लगा दिया। भाजपा ने चुनावों के दौरान एनसीपी नेताओं पर को-ऑपरेटिव बैंक और सिंचाई घोटाले में शामिल होने के आरोप लगाए थे। यहां तक एनसीपी के नेता और शरद पवार के भतीजे अजीत पवार पर इस घोटाले में शामिल होने तक के आरोप लगे थे।
आरे ने चलाया 'आरा'
वहीं आखिरी वक्त में उठा आरे में पेड़ों को काटने का मुद्दा भी भाजपा गठबंधन के खिलाफ रहा। विपक्षी दलों ने इसे जमकर उछाला और मोदी सरकार को घेरा। यहां तक कि मुंबई में आमलोग भी पेड़ काटने के विरोध में खड़े दिखाई दिये। विपक्ष का कहना था कि जहां पीएम मोदी दुनियाभर में पर्यावरण को बचाने की बाते करते हैं, तो वहीं अपने ही देश में उनकी सरकार पेड़ कटवाती है। यहां तक कि शिवसेना ने भी इस पर आपत्ति जताई, शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे का कहना था कि मुंबई मेट्रो का काम चोरी-छिपे और तेजी से आरे के इकोसिस्टम को काट किया जा रहा है। ठाकरे का यही बयान भाजपा के खिलाफ गया, जिसका खामियाजा उसे वोटिग के दिन भुगतना पड़ा।