पहले पीएमसी बैंक और अब यस बैंक. क्या सरकार को कोई चिंता है भी या नहीं?
क्या कोई तीसरा बैंक भी इसी क़तार में है?
'यस बैंक नहीं डूबा, बल्कि मोदी और उनकी नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है'
सोशल मीडिया पर यस बैंक को लेकर ऐसी प्रतिक्रियाएं देखी जा सकती हैं. क़रीब 15 साल पहले बड़े-बड़े सपनों के साथ भारतीय बैंकिंग सेक्टर में उतरा यस बैंक आख़िरकार इस हालत में कैसे पहुँच गया कि अब उसे अपने उन ग्राहकों के पैसे लौटाने में दिक्क़त आ रही है, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई जमा पूंजी के रूप में उसके पास रखी थी.
यस बैंक की देशभर में 1100 से अधिक शाखाएं हैं और इनमें 21 हज़ार से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. बैंक बुरे हाल में है, इसे लेकर तो बातें बहुत पहले से की जा रहीं थीं, लेकिन बैंक का बोर्ड प्रबंधन ये भरोसा दिलाता रहा कि ग्राहकों का भरोसा वो टूटने नहीं देगा और उनकी जमां पूँजी बैंक के पास सुरक्षित है.
लेकिन गुरुवार की शाम को जारी हुए रिज़र्व बैंक के एक सर्कुलर ने यस बैंक के ग्राहकों की नींद उड़ा दी. रिज़र्व बैंक ने यस बैंक के बोर्ड को भंग करते हुए उस पर प्रशासक नियुक्त कर दिया है. इसके साथ ही बैंक के जमाकर्ताओं पर निकासी की सीमा सहित इस बैंक के कारोबार पर कई तरह की पाबंदिया भी लगाई गई हैं. केंद्रीय बैंक ने अगले आदेश तक बैंक के ग्राहकों के लिए निकासी की सीमा 50,000 रुपए तय की है. मेडिकल इमरजेंसी, उच्च शिक्षा या शादी की स्थिति में ये सीमा पाँच लाख रुपये है. बैंक का नियंत्रण भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व में वित्तीय संस्थानों के एक समूह यानी कंसोर्शियम के हाथ में देने की तैयारी की गई है.
तो आख़िरकार नवंबर 2003 को अस्तित्व में आया यस बैंक अर्श से फ़र्श तक कैसे पहुँच गया?
यस बैंक बनने की कहानी भी दिलचस्प है. साल 2004 में राणा कपूर ने अपने रिश्तेदार अशोक कपूर के साथ मिलकर इस बैंक की शुरुआत की थी.
लेकिन साल 2008 में मुंबई में 26/11 के चरमपंथी हमले में अशोक कपूर की मौत हो गई, उसके बाद अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर और राणा कपूर के बीच बैंक के मालिकाना हक़ को लेकर लड़ाई शुरू हो गई. मधु अपनी बेटी शगुन गोगिया को बैंक के बोर्ड में बतौर डायरेक्टर शामिल कराना चाहती थीं, जबकि बोर्ड के मेंबर इसके लिए राज़ी नहीं थे. फिर ये जंग अदालत में पहुँची और कई साल तक चलती रही.
अदालत में जीत मिली राणा कपूर को और 30 अगस्त 2018 को रिज़र्व बैंक ने राणा कपूर को अगले आदेश तक एमडी और सीईओ के रूप में बने रहने की मंज़ूरी दे दी.
राणा कपूर की शख्सियत
कुछ साल पहले तक फ़ाइनेंशियल सेक्टर में एक चर्चा आम रहती थी, "अगर कोई आपको लोन नहीं दे रहा तो राणा कपूर तो पक्का लोन दे देगा." एक दशक तक लोगों को इस बात पर कोई शक नहीं था और न ही यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर की क़ाबिलियत पर.
राणा कपूर को जानने वाले लोग बताते हैं कि कारोबार को लेकर बेहद गंभीर रहते थे और आक्रामक भी. बैंकिंग सेक्टर में उनकी मिसालें तक दी जाती थी कि क़र्ज़ कैसे वसूलना है वो राणा कपूर से सीखें. यहाँ तक कि जब किंगफ़िशर जैसी एयरलाइंस में सरकारी बैंकों का हज़ारों करोड़ रुपया डूब रहा था, राणा कपूर यस बैंक का पैसा वसूलने के लिए रणनीतियां बनाने में जुटे थे और उन्हें इस वसूलने में काफ़ी हद तक कामयाबी भी हासिल हुई.
साल 2008 में वैश्विक मंदी के बीच जहाँ अमरीका समेत दुनियाभर के बैंक चरमरा रहे थे, राणा कपूर की अगुवाई में यस बैंक ने ख़ुद को इस भंवर में डूबने से बचा लिया. फिर मई 2014 में नरेंद्र मोदी सत्ता में आए. राणा कपूर को मोदी सरकार की नीतियों का बड़ा समर्थक माना जाता रहा है.
बैंक के दुर्दिन
बैंक के बुरे दिनों की शुरुआत कहाँ से शुरू हुई, ये तो ठीक-ठीक बताना संभव नहीं है, लेकिन सितंबर 2018 में रिज़र्व बैंक ने राणा कपूर को एक और एक्सटेंशन देने से इनकार कर दिया. राणा कपूर के जनवरी 2019 में एमडी और सीईओ पद से हटने के बाद यस बैंक में एक के बाद एक बुरी ख़बरें आने का दौर शुरू हुआ.
2018-19 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में बैंक को 1500 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ. जब से बैंक अस्तित्व में आया था, ये उसका सबसे बड़ा घाटा था. आरोप ये भी लगा कि बैंक ने जान बूझकर अपने खातों में घाटे के इस आंकड़े को छिपाया था.
राणा कपूर और उनके रिश्तेदार लगाकार बैंक में अपनी हिस्सेदारी घटाते रहे. अक्टूबर 2019 में राणा कपूर और उनके ग्रुप की हिस्सेदारी घटकर पौने पाँच फ़ीसदी के क़रीब आ गई.
तमाम विदेशी फंड हाउसेज़ और क्रेडिट एजेंसियों ने यस बैंक का आउटलुक घटा दिया और निगेटिव लिस्ट में डाल दिया. यानी अब यस बैंक के लिए ओपन मार्केट और विदेशों से पैसा जुटाना मुश्किल होने लगा.
दलदल में धंसते जा रहे यस बैंक ने बचने का एक और दांव खेला और डॉयचे बैंक इंडिया के प्रमुख रणवीर गिल को नया सीईओ नियुक्त किया.
इसके बाद, बैंक ने शेयर और डेट सिक्योरिटीज़ यानी बॉन्ड्स बेचकर पूँजी जुटाने की भी कोशिशें की, लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी.
बाद में आए तिमाही नतीजों से भी साफ़ झलकने लगा कि कभी तेज़ रफ्तार से दौड़ रहा यस बैंक पटरी से उतर गया है.
पिछले साल 14 मई को रिज़र्व बैंक ने अपने डिप्टी गवर्नर आर गांधी को यस बैंक के बोर्ड में अतिरिक्त डायरेक्टर नियुक्त किया. केंद्रीय बैंक अक्सर ऐसा क़दम तभी उठाता है जब किसी बैंक पर अतिरिक्त निगरानी की ज़रूरत हो.
अगस्त 2019 में जहाँ यस बैंक के एक शेयर की क़ीमत 404 रुपये थी, वहीं शुक्रवार को ये 5.65 रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर तक पहुँच गया. यानी सात महीनों में कुल मिलाकर शेयर के दाम 85 प्रतिशत गिर गए और यस बैंक की मार्केट वैल्यू 7943 करोड़ रुपये घट गई.