सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ साल 2009 से लंबित पड़े अदालत की अवमानना के एक अन्य मामले की सुनवाई के लिए भी 24 जुलाई की तारीख़ तय की है
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका के प्रति कथित रूप से अपमानजनक ट्वीट करने के मामले में अधिवक्ता एवं कार्यकर्ता प्रशांत भूषण खिलाफ मंगलवार को स्वत: अवमानना की कार्यवाही शुरू की.
सुप्रीम कोर्ट ने ट्विटर इंडिया के खिलाफ भी अवमानना की कार्यवाही शुरू की है. भूषण की कथित अपमानजनक टिप्पणियां ट्विटर हैंडल से ही प्रसारित हुई थीं.
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष यह मामला बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है.
बता दें कि प्रशांत भूषण न्यायपालिका से जुड़े मसले लगातार उठाते रहे हैं और हाल ही में उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान दूसरे राज्यों से पलायन कर रहे कामगारों के मामले में शीर्ष अदालत के रवैये की तीखी आलोचना की थी.
भूषण ने भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी वरवर राव और सुधा भारद्वाज जैसे जेल में बंद नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे व्यवहार के बारे में बयान भी दिए थे.
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि प्रशांत भूषण के किस ट्वीट को पहली नजर में शीर्ष अदालत की अवमानना करने वाला माना गया है.
बार एंड बेंच ने अनुमान लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट की इस कार्यवाही के पीछे भूषण का वह ट्वीट जिम्मेदार है जिसमें उन्होंने औपचारिक आपातकाल के बिना लोकतंत्र की तबाही के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम चार मुख्य न्यायाधीशों- जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जेएस खेहर – की भूमिका की आलोचना की थी.Prashant Bhushan @pbhushan1
लॉ के अनुसार, इस कार्यवाही के लिए भूषण का वह ट्वीट जिम्मेदार है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट लॉकडाउन मोड में डालकर नागरिकों को न्याय का उनका मौलिक अधिकार देने से इनकार करने के दौरान बिना हेटमेट या मास्क के मोटरसाइकिल चलाने पर सीजेआई एसए बोबड़े की आलोचना की थी.
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर कानून विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायपालिका की आलोचना करने वाले भूषण के ये ट्वीट या अन्य बयान अवमानना नहीं हैं.
कानून के जानकार गौतम भाटिया ने ट्वीट कर कहा, ‘तथाकथित याचिका को देखा, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कथित रूप से प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की है. इस पर ठोस प्रतिक्रिया देने का कोई मतलब नहीं है. शीर्ष अदालत खुद को शर्मिंदा कर रही है और कहने के लिए और कुछ नहीं है.’
अगर वास्तव में जस्टिस अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने भूषण के खिलाफ सीजेआई बोबड़े और हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल के बारे में उनके ट्वीट पर अवमानना का मुकदमा चलाने का इरादा किया है, तो भूषण के वकील दिवंगत वरिष्ठ वकील विनोद ए. बोबड़े की अवमानना पर एक आधिकारिक एससीसी जर्नल लेख का हवाला दे सकते हैं.
उन्होंने कहा था, ‘हम ऐसी स्थिति का सामना नहीं कर सकते कि अदालत के अंदर या बाहर जहां नागरिक न्यायाधीशों के आचरण पर आलोचना के शब्दों की अवमानना के लिए अदालत की मनमानी शक्ति के डर से रहते हैं.’
बता दें कि विनोद ए. बोबड़े मौजूदा सीजेआई एसए बोबड़े के भाई हैं.
इससे पहले नवंबर 2009 में शीर्ष अदालत ने भूषण को कथित तहलका पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में कुछ तत्कालीन और शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीशों पर कथित रूप से आरोपों के लिए अवमानना नोटिस जारी किया था.
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार इस मामले को मई 2012 से अब तक नहीं सुना था. अब आठ साल बाद इस पर 24 जुलाई को सुनवाई होगी.
सुप्रीम कोर्ट की बेवसाइट के अनुसार, 2009 से लंबित मामले की भी सुनवाई जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ शुक्रवार को करेगी.