लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद भी 11 राज्यों के लोग भूख की समस्या से पीड़ित: सर्वे

भोजन का अधिकार अभियान द्वारा कराए गए सर्वे में अनुसूचित जाति, जनजाति और मुस्लिमों समेत धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल थे. सर्वे के अनुसार लगभग 56 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन से पहले कभी भी भोजन छोड़ना नहीं पड़ा था. हालांकि सितंबर और अक्टूबर में 27 प्रतिशत लोगों को बिना भोजन के सोना पड़ा.

A boy eats at an orphanage run by a non-governmental organisation on World Hunger Day, in the southern Indian city of Chennai May 28, 2014. REUTERS/Babu

(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

हिंदी दैनिक आज का मतदाता नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी के चलते लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के खत्म होने के पांच महीने बाद भी गरीबों और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के बीच भुखमरी की समस्या गंभीर बनी हुई है.

भोजन का अधिकार अभियान द्वारा कुछ गैर-सरकारी संगठनों के साथ प्रकाशित ‘हंगर वॉच’ रिपोर्ट के मुताबिक देश के कम से कम 11 राज्यों के लोगों को इस संकट का सामना करना पड़ रहा है.

ये सर्वे सितंबर और अक्टूबर, 2020 के बीच कराया गया था और इसमें 3,994 लोग शामिल हुए थे. इसमें से ज्यादातर लोगों की सैलरी 7,000 रुपये प्रति महीने से कम थी.

सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु राज्य शामिल थे.

रिपोर्ट के लिए ग्रामीण क्षेत्रों के 2,186 व्यक्तियों का साक्षात्कार लिया गया, बाकी का शहरी क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया गया. इंटरव्यू में मुख्य रूप से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुस्लिमों समेत धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल थे.

रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा, ‘विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों के लगभग 77 फीसदी परिवारों, 76 फीसदी दलितों और 54 फीसदी आदिवासियों ने बताया कि सितंबर-अक्टूबर में लॉकडाउन से पहले की तुलना में उनके भोजन की खपत में कमी आई है.’

रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘जहां तक अनाज, दाल और सब्जियों की खपत का सवाल है तो 53 फीसदी ने बताया कि चावल/गेहूं की खपत सितंबर-अक्टूबर में घट गई. वहीं चार में से एक का कहना था कि उनकी खपत में ‘बहुत कमी’ आई है.’

रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार 64 फीसदी लोगों ने कहा कि उनकी दाल की खपत कम हो गई है और 73 फीसदी ने कहा कि उनकी हरी सब्जियों की खपत पिछले दो महीनों में कम हो गई है.

न्यूज रिपोर्ट में कहा गया, ‘लगभग 56 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन से पहले कभी भी भोजन छोड़ना नहीं पड़ा था. हालांकि सितंबर और अक्टूबर में 27 प्रतिशत लोगों को बिना भोजन के सोना पड़ा. 20 में से लगभग एक परिवार अक्सर बिना खाए सोता है.’

गुजरात में अन्न सुरक्षा अभियान द्वारा किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि 20.6 फीसदी परिवारों ने कभी-कभी घर में भोजन की कमी के कारण भोजन छोड़ दिया, जबकि 28 फीसदी ने कहा कि उन्हें भोजन के बिना सोना पड़ा.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के नौ जिलों- अहमदाबाद, आणंद, भरूच, भावनगर, दाहोद, मोरबी, नर्मदा, पंचमहल और वडोदरा में किए गए सर्वेक्षण में ये भी पाया गया कि गुजरात में कई राशन कार्ड को ‘निष्क्रिय’ कर दिया गया है.

‘हंगर वॉच’ का हवाला देते हुए अखबार ने कहा, ‘सरकार ने परिवारों को सटीक जानकारी नहीं दी है, जिनमें से बहुत से वंचित समुदायों से हैं, कि आखिर क्यों उनके राशन कार्ड का उपयोग नहीं किया जा सकता है. राशन कार्ड को ’निष्क्रिय’ करने की यह प्रक्रिया स्थानीय तालुका और जिला स्तर पर हुई है. इसके अतिरिक्त कई क्षेत्रों में कोविद-19 के कारण तालुका स्तर की समिति की बैठकें प्रभावी ढंग से नहीं हुए है, नतीजन वंचित परिवारों को खाद्य सुरक्षा से वंचित हो रहे हैं.’

इन निष्कर्षों के आधार द हिंदू की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लगभग 71% जो मांसाहारी थे, वे अंडे या मांस नहीं खरीद पाए. कोविड-19 के प्रभावों के बारे में पूछे जाने पर लगभग 66 फीसदी या दो तिहाई लोगों ने कहा कि वे पहले जितना नहीं खा पाते हैं.’

इस सर्वे के आधार पर भोजन का अधिकार अभियान ने मांग की है कि सभी परिवारों को जून, 2021 तक कम से कम 10 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल और 800 ग्राम तेल दिया जाए.

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