पूर्व नौकरशाहों ने योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा, कहा- प्रदेश बना नफ़रत की राजनीति का केंद्र

देश के 104 पूर्व नौकरशाहों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर धर्मांतरण विरोधी क़ानून को तत्काल प्रभाव से वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि इसका इस्तेमाल मुस्लिम पुरुषों और अपनी मर्ज़ी से शादी कर रही महिलाओं को प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/MYogiAdityanath)

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक/MYogiAdityanath)

नई दिल्लीः 104 पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर धर्मांतरण विरोधी काून के इस्तेमाल को लेकर चिंता जताई.

 रिपोर्ट के मुताबिक, पत्र में इस अध्यादेश को वापस लिए जाने और इसके तहत जिन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, उनके लिए उचित मुआवजे की मांग करते हुए कहा गया, ‘एक समय में उत्तर प्रदेश गंगा-जमुनी तहजीब को सींचने वाला था लेकिन हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश नफरत, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बन गया है और सरकारी संस्थाएं सांप्रदायिक जहर में डूबी हुई हैं.’

इस पत्र पर शिव शंकर मेनन, वजाहत हजीबुल्लाह, टीएके नायर, के सुजाता राव और एएस दुलत जैसे सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने हस्ताक्षर किए हैं.

पत्र में कहा गया कि वे किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए नहीं हैं, लेकिन संविधान द्वारा भारत की परिकल्पना को लेकर संकल्पबद्ध हैं.

धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत मुरादाबाद में हुई गिरफ्तारी के मामले का उल्लेख करते हुए पत्र में कहा कि निर्दोष दंपति का प्रताड़ित किए जाने के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही. साथ ही उन्होंने इसे अजन्मे बच्चे की हत्या बताया.

नौकरशाहों ने पत्र में कहा, ‘सभी भारतीयों के आक्रोश की परवाह किए बिना ये अत्याचार जारी है. राज्य के धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश का इस्तेमाल उन भारतीय पुरुषों जो मुस्लिम हैं और वे महिलाएं जो अपनी मर्जी से शादी करती हैं, उन्हें प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है.’

पत्र में कहा, ‘आपके राज्य में इस कानून का इस्तेमाल लाठी के तौर पर किया जा रहा है. खासकर हिंदुस्तानी मुस्लिम लड़कों पर.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘इससे भी ख़राब यह है कि आपकी कानून लागू करवाने वाली संस्थाएं आपकी सरकार की शह पर उस तरह की भूमिका निभा रही हैं, जैसे तानाशाहों के राज में उनकी गुप्त पुलिस की हुआ करती है…’

बता दें कि बीते 24 नवंबर को उत्तर प्रदेश सरकार तथाकथित ‘लव जिहाद’ को रोकने के लिए शादी के लिए धर्म परिवर्तन पर लगाम लगाने के लिए ‘उत्‍तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्‍यादेश, 2020’ ले आई थी.

इसमें विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है. उत्तर प्रदेश पहला ऐसा राज्य है, जहां लव जिहाद को लेकर इस तरह का कानून लाया गया है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नया कानून आने के बाद से एक महीने में राज्य में 14 केस दर्ज किए गए और 51 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें से 49 अभी जेल में हैं.

इन 14 मामलों में से 13 में आरोप लगाया गया है कि हिंदू महिला को इस्लाम कबूलने के लिए मजबूर किया गया है. इसमें से सिर्फ दो मामलों में ही संबंधित महिला ने शिकायत दर्ज कराई है, बाकी के 12 मामलों में लड़की के परिजनों ने केस दर्ज कराया है.

इसमें से दो केस में कट्टरवादी हिंदू कार्यकर्ताओं ने हस्तक्षेप किया है और पुलिस स्टेशन के सामने नारेबाजी की थी. एक को छोड़कर बाकी सभी मामलों में लड़की बालिग है. इसी तरह आठ मामलों में हिंदू-मुस्लिम युवक-युवती या तो दोस्त थे या फिर ‘रिलेशनशिप’ में थे. वहीं एक युवक-युवती ने दावा किया है कि उन्होंने पहले से ही शादी कर ली थी.

इनमें से एक केस में कथित तौर पर गैरकानूनी ढंग से ईसाई धर्म में परिवर्तन कराने का आरोप है. इसे लेकर आजमगढ़ में तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज है.

दो मामलों में महिलाओं, जिनकी अन्य से शादी हो चुकी है, ने ‘सामाजिक दबाव’ के चलते अपना बयान दर्ज कराने से इनकार कर दिया है. इसके अलावा दो अन्य मामलों में महिलाओं ने बलात्कार का आरोप लगाया है. कथित तौर पर धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर की गईं महिलाओं में से तीन लोग दलित हैं.

उत्तर प्रदेश के बिजनौर में इस तरह के तीन मामले और शहाजहांपुर में दो मामले दर्ज किए गए हैं. बाकी के केस बरेली, मुजफ्फरनगर, मऊ, सीतापुर, हरदोई, एटा, कन्नौज, आजमगढ़ और मुरादाबाद जिलों के हैं. एक मामले में पुलिस महिला का पता लगाने में असमर्थ रही है.

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