कोर्ट ने मुंबई पुलिस के पूर्व प्रमुख से पूछा, गृहमं​त्री देशमुख के ख़िलाफ़ केस क्यों नहीं किया

मुंबई पुलिस के पूर्व प्रमुख परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर आरोप लगाया था कि उन्होंने निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वझे से मुंबई के बार और होटलों से प्रति माह 100 करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा था. मामले में केस दर्ज न कराने पर हाईकोर्ट ने सिंह से कहा कि आप वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं. ग़लत काम के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराना आपकी ज़िम्मेदारी थी.

मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बुधवार को मुंबई पुलिस के पूर्व प्रमुख परमबीर सिंह से पूछा कि यदि उन्हें महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख द्वारा कथित रूप से गलत काम किए जाने की जानकारी थी तो उन्होंने उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई?

सिंह ने हाल में दावा किया था कि देशमुख ने पुलिस अधिकारी सचिन वझे को मुंबई के बार और रेस्तरां से 100 करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा था.

सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे आठ पन्नों के एक पत्र में दावा किया था कि देशमुख चाहते थे कि पुलिस अधिकारी बार और होटलों से हर महीने 100 करोड़ रुपये की वसूली करें.

पत्र के अनुसार, ‘सम्मानीय गृहमंत्री ने वझे से कहा था कि मुंबई में 1750 बार, रेस्टोरेंट और अन्य प्रतिष्ठान हैं और अगर हर बार और रेस्टोरेंट से दो से तीन लाख रुपये की वसूली की जाती है तो एक महीने में 40 से 50 करोड़ रुपये तक वसूला जा सकता है. सम्मानीय गृह मंत्री ने कहा था कि बाकी की राशि अन्य स्रोतों से वसूली जा सकती है.’

हालांकि गृह मंत्री ने कुछ भी गलत काम करने से इनकार किया है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, आप एक पुलिस कमिश्नर हैं, कानून को आपके लिए अलग क्यों रखा जाना चाहिए? क्या पुलिस अधिकारी, मंत्री और राजनीतिज्ञ सभी कानून से ऊपर हैं? क्या आप कह रहे हैं कि आप कानून से ऊपर हैं?

अदालत ने कहा, ‘हम कानून को इसलिए अलग नहीं रख सकते क्योंकि इसमें गृहमंत्री और मुख्यमंत्री शामिल हैं. अगर कोई प्रधानमंत्री शामिल होता है तो मामले की जांच कौन करेगा? आप अलग से कोई शक्ति चाहते हैं?’

परमबीर सिंह ने हाईकोर्ट को बताया, ‘यह कठोर तथ्य है और उस व्यक्ति से जुड़े हैं, जो शहर की पुलिस फोर्स में शीर्ष पद है और 30 वर्षों से अधिक समय से सेवा में रहे हैं.’

अदालत ने मामले में एफआईआर दर्ज नहीं कराने पर सवाल उठाया. अदालत ने कहा, ‘मामले की जांच के लिए एक एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी. आपको एफआईआर दर्ज करने से कौन रोक रहा था. प्रथमदृष्टया पता चलता है कि बिना एफआईआर के जांच नहीं की जा सकती.’

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायाधीश जीएस कुलकर्णी की एक खंडपीठ ने सिंह से पूछा कि उन्होंने पहले पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई? खंडपीठ ने कहा कि प्राथमिकी (एफआईआर) के बिना हाईकोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता या सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी को जांच का निर्देश नहीं दे सकता.

मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘आप (सिंह) एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं. आप साधारण आदमी नहीं हैं. गलत काम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना आपकी जिम्मेदारी थी. यह जानने के बावजूद कि आपके ‘बॉस’ द्वारा अपराध किया जा रहा है, आप (सिंह) चुप रहे.’

गत 17 मार्च को मुंबई के पुलिस आयुक्त पद से स्थानांतरित किए गए परमबीर सिंह ने शुरुआत में उच्चतम न्यायालय का रुख किया था. उच्चतम न्यायालय ने उन्हें हाईकोर्ट जाने को कहा था.

अदालत सिंह द्वारा हाईकोर्ट में 25 मार्च को दाखिल एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गृहमंत्री देशमुख के खिलाफ सीबीआई जांच कराए जाने का अनुरोध किया गया है.

बुधवार को दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने राज्य सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों और सिंह द्वारा मांगी गई राहत पर अपना आदेश सुरक्षित रखा.

अदालत ने दो वकीलों और एक प्रोफेसर द्वारा दायर तीन अन्य याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रखा. इन याचिकाओं में मामले में स्वतंत्र जांच का अनुरोध किया गया है.

पीठ ने यह जानना चाहा कि क्या किसी नागरिक ने इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है तो महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने कहा कि वकील जयश्री पाटिल ने 21 मार्च को दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है.

पाटिल ने हाईकोर्ट में एक याचिका भी दाखिल की है. पाटिल ने पीठ को बताया कि पुलिस में दी गई अपनी शिकायत में उन्होंने परमबीर सिंह के आरोपों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया था.

तब अदालत ने कुंभकोनी से पूछा कि क्या पुलिस द्वारा कोई पूछताछ की गई है और उसने उनसे पुलिस थाने की डायरी प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है.

अदालत ने यह भी पूछा कि पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने में संकोच क्यों कर रही है. मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘आपको शर्म क्यों आती है? अगर प्राथमिकी दर्ज की जाती है तो क्या गलत है?’

कुंभकोनी ने बाद में अदालत को बताया कि स्टेशन डायरी को तुरंत अदालत में पेश नहीं किया जा सकता है, लेकिन पाटिल द्वारा दायर की गई शिकायत की डायरी में कोई प्रविष्टि नहीं है.

अदालत ने कहा, ‘कार्रवाई का उचित तरीका है कि पहले पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज करनी होगी. यदि पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती है, तो आपके (सिंह) पास मजिस्ट्रेट के सामने एक आवेदन दाखिल करने का विकल्प है.’

सिंह के वकील विक्रम नानकानी ने कहा कि उनके मुवक्किल इस ‘चक्रव्यूह’ से बचना चाहते थे. हालांकि उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून में निर्धारित प्रक्रिया है.

मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने पूछा, ‘क्या आप कह रहे हैं कि आप कानून से ऊपर हैं.’

नानकानी ने दलील कि उनके पास उच्च न्यायालय जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि शिकायत और आरोप ‘राज्य प्रशासन के प्रमुख’ के खिलाफ थे.

पीठ ने कहा कि एफआईआर के बिना वह मामले की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने के निर्देश देने संबंधी कोई आदेश पारित नहीं कर सकती है.

मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘हमारी प्रथम दृष्टया राय यह है कि एफआईआर के बिना यह अदालत जांच का आदेश नहीं दे सकती.’

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने याचिका को खारिज किए जाने का अनुरोध किया और दावा किया कि याचिका व्यक्तिगत प्रतिशोध की भावना के साथ दाखिल की गई है.

कुंभकोनी ने कहा, ‘जनहित में याचिका दायर नहीं की गई है, यह व्यक्तिगत शिकायतों और हितों से युक्त है. याचिकाकर्ता इस अदालत में गंदे हाथों और गंदी सोच के साथ आए हैं.’

मुंबई पुलिस के पूर्व प्रमुख परमबीर सिंह ने अपनी याचिका में दावा किया है कि देशमुख ने निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वझे समेत पुलिस अधिकारियों से बार और रेस्तरां से प्रतिमाह 100 करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा था.

इस बीच वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी परमबीर सिंह का तबादला कर उन्हें होमगार्ड विभाग में भेज दिया गया था. सिंह ने कहा था कि उन्हें इस मामले में बलि का बकरा बनाया गया.

सिंह ने पीआईएल में राज्य में पुलिस तबादलों में कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाया है.

सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत से कहा कि अदालत जो भी आदेश देगी, एजेंसी उसका पालन करेगी.

मालूम हो कि सचिन वझे दक्षिण मुंबई में उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के निकट 25 फरवरी को विस्फोटक से लदी स्कॉर्पियो कार मिलने के मामले में एनआईए द्वारा की जा रही जांच के केंद्र में हैं.

मुंबई पुलिस के अधिकारी सचिन वझे को इस मामले में कथित भूमिका के चलते 13 मार्च को गिरफ्तार कर लिया गया था. वह हाल तक मुंबई पुलिस की अपराध शाखा की अपराध खुफिया इकाई से संबद्ध थे.

एनआईए ने कहा थो कि वझे को विस्फोटकों से भरा वाहन खड़ा करने में भूमिका निभाने और इसमें संलिप्त रहने को लेकर गिरफ्तार किया गया.

इस बीच विस्फोटक से लदी कार के मालिक ऑटोमोबाइल पार्ट्स के व्यवसायी मनसुख हिरेन का पांच मार्च को ठाणे में एक स्थान पर शव मिला था, जिसके बाद मामले में रहस्य और गहरा गया था. पुलिस ने कहा था कि हिरेन की गाड़ी 18 फरवरी को चोरी हो गई थी.

मनसुख हिरेन की मौत के मामले में आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) ने एफआईआर दर्ज करने के बाद मनसुख की पत्नी विमला हिरेन का जवाब दाखिल किया था.

विमला ने बताया था कि सचिन वझे उनके पति के संपर्क में थे. नवंबर 2020 में वझे ने मनसुख से स्कॉर्पियो कार इस्तेमाल करने के लिए ली थी. 5 फरवरी 2021 को वझे ने अपने ड्राइवर के हाथों स्टीयरिंग में कुछ समस्या होने की बात कहकर कार वापस लौटा दी थी.

मनसुख हिरेन की पत्नी ने अपने बयान में वझे के खिलाफ आरोप लगाए हैं. उन्होंने आशंका जताई कि उनके पति की हत्या में सचिन वझे का हाथ हो सकता है.

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