केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते छह महीनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि किसान आंदोलन में 470 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है. कई आंदोलनकारियों को अपनी नौकरियां, पढ़ाई एवं दूसरे काम छोड़ने पड़े. सरकार अपने नागरिकों, अन्नदाताओं के प्रति कितना अमानवीय एवं लापरवाह रुख़ दिखा रही है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में हो रही बारिश के कारण बढ़ती मुश्किलों के बीच दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने बुधवार को केंद्र सरकार से कहा कि ‘हमारे धैर्य की परीक्षा नहीं लें, वार्ता की शुरुआत करें और हमारी मांगों को मान ले.’
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्से से हजारों की संख्या में किसान दिल्ली के तीन सीमा बिंदुओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर में करीब छह महीने से धरना दे रहे हैं. वे तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं.
एसकेएम ने बयान जारी कर कहा, ‘किसान आंदोलन में 470 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है. कई आंदोलनकारियों को अपनी नौकरियां, पढ़ाई एवं दूसरे काम छोड़ने पड़े. और सरकार अपने नागरिकों, अन्नदाताओं के प्रति ही कितना अमानवीय एवं लापरवाह रुख दिखा रही है. सरकार अगर अपने किसानों की चिंता करती और उनका कल्याण चाहती तो उसे किसानों से वार्ता शुरू करनी चाहिए और उनकी मांगें माननी चाहिए.’
संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार को चेतावनी दी कि वह किसानों के धैर्य की परीक्षा न लें.
आंदोलनरत किसान संगठनों के समूह का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कहा कि यह सरकार किसानों की हितैषी होने का बहाना करती है और जब किसी राज्य में फसल के उत्पादन या निर्यात में बढ़ोतरी का पूरा श्रेय लेती है तो इसे प्रत्येक नागरिक की क्षति और दूसरे नुकसानों की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए, जो दिल्ली की सीमाओं पर हो रही है.
किसानों ने कहा, ‘बारिश के कारण भोजन एवं आवास की स्थिति खराब हो रही है. सड़कें एवं प्रदर्शन स्थल के कई हिस्से बारिश के पानी से भर गए हैं.’
अब तक प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच अभी तक 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध बना हुआ है क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में छह महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
इससे पहले बीते 11 अप्रैल को भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने कहा था कि यदि सरकार आमंत्रित करती है तो नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान बातचीत के लिए तैयार हैं. हालांकि उन्होंने यह भी कहा था कि बातचीत वहीं से शुरू होगी, जहां 22 जनवरी को खत्म हुई थी और मांगों में कोई बदलाव नहीं होगा.
टिकैत का बयान कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज द्वारा केंद्रीय कृषि मंत्री से वार्ता बहाली के लिए की गई अपील के बाद आया था.
अनिल विज ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वो केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ बातचीत फिर शुरू करें, क्योंकि कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा लगातार मंडरा रहा है.
इसके अलावा हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने भी बीते 17 अप्रैल को किसानों से बातचीत फिर से शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है.