हिंदी दैनिक आज का मतदाता गाजियाबाद, तेरे आने की वजह से, हाथ व माथे की रेखाएं भी बदल सी गई है, 100 वर्षों की भविष्यवाणी भी शून्य में बदल गई , कल का कोई भरोसा नहीं, जीने मरने की सात जन्मों की, जो कसमें खाई थी, वह ना जाने कहां खो सी गई है , वह भूख, प्यास ,खालीपन बीमारी ,सूनापन पैसे का अभाव, सबसे ज्यादा खाए जा रहा है, शहर में लॉकडाउन सभी तरफ कालाबाजारी और लूटपाट, शब्दों और ख्वाबों को विराम दे चुका है, और कह रहा है कि मैं जिंदा नहीं हूं जिंदा लाश हूं, और अपने हाथों की रेखाओं को निहार रहा हूं ।
वाह रे करोना