पुलिस प्रताड़ना के ख़िलाफ़ कोर्ट का आदेश, कहा- एलजीबीटी समुदाय को हाशिए पर नहीं छोड़ सकते

पुलिस प्रताड़ना के ख़िलाफ़ दो समलैंगिक महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय के संबंधों के प्रति समाज में परिवर्तन की ज़रूरत है. असली समस्या क़ानूनी मान्यता की नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति की है. हमारा मानना है कि सामाजिक स्तर पर बदलाव होने चाहिए.

(फोटो: रॉयटर्स)

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: एलजीबीटीक्यूआईए+(LGBTQIA+) समुदाय के अधिकारों को मान्यता देते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कई दिशानिर्देश जारी कर कहा कि उनके माता-पिता द्वारा दर्ज कराई गई गुमशुदगी की शिकायतों पर उन्हें पुलिस द्वारा परेशान न किया जाए.

लाइव लॉ के मुताबिक, पुलिस प्रताड़ना के खिलाफ दो समलैंगिक महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर जस्टिस आनंद वेंकटेश की एकल पीठ ने कहा कि एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के संबंधों के प्रति समाज में परिवर्तन की जरूरत है. समाज की अस्वीकृति के चलते इस समुदाय को अन्य लोगों के बैर का सामना करना पड़ता है.

कोर्ट ने कहा, ‘असली समस्या ये नहीं है कि कानून में ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं मिली है, बल्कि दिक्कत ये है कि उन्हें सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली हुई है. यही वजह है कि मेरा मानना है कि सामाजिक स्तर पर बदलाव होने चाहिए और जब कानून में भी इसको मान्यता मिल जाएगी, तब समाज द्वारा समलैंगिक संबंधों की स्वीकार्यता के बाद असाधारण बदलाव आएगा.’

न्यायालय ने कहा कि एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के प्रति समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने के लिए इस पर कानून बनाने की जरूरत है, ताकि उनके जीवन और सम्मान की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.

कोर्ट ने कहा कि जिस तरह शारीरिक रूप से अक्षम और मानसिक बीमारी पर कानून बनाने के बाद परिवर्तन आ रहा है, इसी तरह का कदम एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के लिए भी उठाने की जरूरत है.

कोर्ट ने कहा, ‘विधायिका द्वारा इस पर कानून बनाने तक एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय को ऐसे हाशिए पर नहीं छोड़ा जा सकता है, जहां उनकी सुरक्षा को लेकर कोई गारंटी न हो. इस खाई को भरने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की जरूरत है.’

कोर्ट ने कहा कि किसी लड़की/महिला/पुरुष की गुमशुदगी मामले में जांच के दौरान ये पता चलता है कि वे एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय से हैं, तो उनका बयान दर्ज करने के बाद मामले को बंद किया जाना चाहिए और किसी भी तरह से उनको प्रताड़ित न किया जाए.

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ऐसे गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) की सूची तैयार करे, जिनका एलजीबीटी समुदाय मामलों में विशेषज्ञता हासिल हो. ऐसे एनजीओ के सभी संपर्क विवरण आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया जाए, ताकि समुदाय के लोग अपने अधिकारों की रक्षा के लिए इनसे संपर्क कर सकें. इस संबंध में आठ हफ्ते के भीतर कार्रवाई की जाए.

कोर्ट ने कहा कि एनजीओ मंत्रालय के साथ मिलकर ऐसे लोगों का गोपनीय रिकॉर्ड तैयार करें जो उनसे मदद मांगने आते हैं और इसकी एक रिपोर्ट संबंधित मंत्रालय को मुहैया कराई जाए.

न्यायालय ने कहा एलजीबीटी समुदाय की समस्याओं को सभी संभावित तरीकों जैसे कि काउंसलिंग, आर्थिक मदद, कानून मदद इत्यादि से की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा कि यदि रहने को लेकर समस्या है तो उन्हें शॉर्ट स्टे होम, आंगनवाड़ी शेल्टर और गरिमा गृह जैसे स्थानों पर जगह दी जानी चाहिए.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय इस आदेश की प्रति प्राप्त करने के 12 हफ्तों के भीतर सभी जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं का निर्माण करे.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने छह सितंबर, 2018 को अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध बताने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द कर दिया था.

अदालत ने कहा था कि अब से सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अपराध के दायरे से बाहर होंगे.

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