असहमति दबाने के लिए आतंकवाद निरोधी क़ानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए: जस्टिस चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक सम्मेलन में कहा कि भारत का उच्चतम न्यायालय बहुसंख्यकवाद निरोधी संस्था की भूमिका निभाता है और सामाजिक, आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों की रक्षा करना शीर्ष अदालत का कर्तव्य है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो साभार: यूट्यूब ग्रैब/Increasing Diversity by Increasing Access)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने चुनौतीपूर्ण समय में मौलिक अधिकारों की रक्षा में शीर्ष न्यायालय की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि आतंकवाद निरोधी कानून समेत अपराध कानूनों का दुरुपयोग असहमति को दबाने या नागरिकों के उत्पीड़न के लिए नहीं होना चाहिए.

अमेरिकन बार एसोसिएशन, सोसाइटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स और चार्टर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ आर्बिट्रेटर्स द्वारा आयोजित सम्मेलन में जस्टिस चंद्रचूड़ ने सोमवार को यह बात कही. सम्मेलन का विषय ‘चुनौतीपूर्ण समय में मौलिक अधिकारों की रक्षा में उच्चतम न्यायालय की भूमिका’ था.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत का उच्चतम न्यायालय बहुसंख्यकवाद निरोधी संस्था की भूमिका निभाता है और सामाजिक, आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक लोगों के अधिकारों की रक्षा करना शीर्ष अदालत का कर्तव्य है.

उन्होंने आगे कहा, ‘इस काम के लिए उच्चतम न्यायालय को एक सतर्क प्रहरी की भूमिका भी निभानी होती है और संवैधानिक अंत:करण की आवाज को सुनना होता है, यही भूमिका न्यायालय को 21वीं सदी की चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए प्रेरित करती है जिसमें वैश्विक महामारी से लेकर बढ़ती असहिष्णुता जैसी चुनौती शामिल हैं जो दुनियाभर में देखने को मिल रही हैं.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कुछ लोग इस हस्तक्षेप को ‘न्यायिक एक्टिविज्म’ या ‘न्यायिक सीमा पार करने’ की संज्ञा देते हैं.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कोविड-19 महामारी के बीच सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप का जिक्र करते हुए कहा कि जेलों में भीड़भाड़ कम करना महत्वपूर्ण था क्योंकि ये स्थान कोरोना वायरस फैलने के लिहाज से संवेदनशील थे लेकिन उतना ही महत्वपूर्ण यह पता लगाना है कि आखिर जेलों में भीड़भाड़ हुई ही क्यों.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘आतंकवाद निरोधी कानून समेत अपराध कानून का इस्तेमाल असहमति को दबाने या नागरिकों का उत्पीड़न करने के लिए नहीं होना चाहिए.’

इंडियन एक्सप्रेस पत्रकार अर्नब गोस्वामी के मामले में दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए कहा, ‘जैसा कि मैंने अर्नब गोस्वामी बनाम महाराष्ट्र सरकार और अन्य में उल्लेख किया है, हमारी अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नागरिकों की स्वतंत्रता से वंचित होने के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति बनी रहें. एक दिन के लिए भी स्वतंत्रता से वंचित करना बहुत अधिक है. हमें हमेशा अपने फैसलों के गहरे प्रणालीगत निहितार्थों के प्रति सचेत रहना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि भारत के लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले पहलुओं में भारत के उच्चतम न्यायालय की भूमिका और सहभागिता को कम करके नहीं आंका जा सकता है.

न्यायाधीश ने कहा, ‘इस जिम्मेदारी से भलीभांति अवगत रहते हुए भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अधिकारों के विभाजन को बनाए रखने को लेकर एकदम सतर्क हैं.’

उन्होंने कहा, ‘न्यायालय ने कई ऐसे मामलों में हस्तक्षेप किया जिसने भारत के इतिहास की दिशा ही बदल दी फिर चाहे नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के संरक्षण की बात हो या सरकार को संविधान के तहत वचनबद्धता के रूप में सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को लागू करने का निर्देश देना हो.’

उन्होंने कहा, ‘संविधान का संरक्षक होने के नाते, शीर्ष न्यायालय को वहां रोक लगानी होती है जहां पर कार्यपालिका और विधायका के कामकाज बुनियादी मानवाधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं.’

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जबकि कुछ ने भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के इन हस्तक्षेपों को ‘न्यायिक सक्रियता’ या ‘न्यायिक अतिक्रमण’ करार दिया है, न्यायालय एक बहुसंख्यक संस्था की भूमिका निभाता है और सामाजिक-आर्थिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना उसका कर्तव्य है.’

उन्होंने कहा, ‘संविधान के संरक्षक के रूप में इसे एक विराम देना होगा जहां कार्यकारी या विधायी कार्य मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं.’

शक्तियों के विभाजन की अवधारणा को पर उन्होंने कहा, ‘भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश शक्तियों के पृथक्करण को बनाए रखने के लिए सावधान हैं. पर्यवेक्षण के माध्यम से नियंत्रण और संतुलन की योजना के परिणामस्वरूप एक शाखा द्वारा कुछ हद तक दूसरे के कामकाज में हस्तक्षेप होता है.’

जस्टिस चंद्रचूड़, जिन्होंने केंद्र की वैक्सीन पॉलिसी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ का नेतृत्व किया, ने कहा कि इस मुद्दे से निपटने के दौरान सुप्रीम कोर्ट ‘सतर्क’ था क्योंकि वो नीति निर्धारण के क्षेत्र में दखल नहीं दे सकता और कार्यपालिका की भूमिका को हड़प नहीं सकता.

उन्होंने कहा, ‘सरकार के नीतिगत निर्णयों के औचित्य पर सवाल उठाने के न्यायालय के दृष्टिकोण ने संवैधानिक ढांचे के भीतर नीति के अस्तित्व के संबंध में सरकार और अदालत के बीच संवाद को आधार बनाने में मदद की.’

भारत और अमेरिका के संबंध पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि दोनों देशों ने भारत की आजादी के बाद से एक गहरा सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध साझा किया है.

उन्होंने कहा कि अमेरिका स्वतंत्र विश्व के नेता के रूप में… स्वतंत्रता, भाषण और अभिव्यक्ति को बढ़ावा देने और समुदायों के बीच धार्मिक शांति को बढ़ावा देने में अग्रणी रहा है. भारत और अमेरिका बहुसंस्कृति के इन आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं. बहुलवादी समाज जहां उनके संविधानों ने मानवाधिकारों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता और सम्मान पर ध्यान केंद्रित किया है.

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