गणतंत्र दिवस हिंसा: दो साज़िशों की कहानी

 


जहां दिल्ली पुलिस का दावा है कि गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर रैली में शामिल किसानों ने लाल क़िले पर कब्ज़ा करने की साज़िश रची थी, वहीं इस मामले को लेकर गठित पंजाब विधानसभा की समिति का कहना है कि उस रोज़ हुई हिंसा पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारी किसानों को बदनाम करने के षड्यंत्र का नतीजा थी.

चंडीगढ़: 26 जनवरी, 2021 को राष्ट्रीय राजधानी में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के बाद पंजाब के किसानों, युवाओं और अन्य लोगों पर दिल्ली पुलिस द्वारा कथित अत्याचारों की जांच के लिए गठित पंजाब विधानसभा समिति ने कहा है कि दिल्ली में गणतंत्र दिवस की घटना प्रदर्शनकारी किसानों को बदनाम करने की दिल्ली पुलिस की साजिश का नतीजा थी.

जांच दल ने अपनी रिपोर्ट हफ्ते भर पहले विधानसभा अध्यक्ष राणा केपी सिंह को सौंप दी है. जिस पर आगे राज्य सरकार को विचार करना है.

इसी दौरान, किसानों और अन्य प्रदर्शनकारियों के लाल किले में प्रवेश करके सिख धार्मिक ध्वज फहराने की घटना के बाद करीब 150 लोगों को गिरफ्तार करने वाली दिल्ली पुलिस लगातार कुछ और दावे कर रही है.उसका कहना है कि किसानों की साजिश थी कि वे लाल किले पर कब्जा कर लें और लाल किले को तीन कृषि कानूनों के खिलाफ नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर जारी उनके आंदोलन के एक धरनास्थल के रूप में बदल दें. पुलिस ने यह दावा इसी माह मई में पेश किए गए आरोप-पत्र में किया था.

इंडियन एक्सप्रेस में 15 सितंबर को छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने अपने इस दावे के समर्थन में कि गणतंत्र दिवस की हिंसा एक गहरी और सुनियोजित साजिश थी, नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच पंजाब और हरियाणा में ट्रैक्टरों की बिक्री में उछाल का हवाला दिया है.

आरोप-पत्र में कहा गया है, ‘आंदोलन और विरोध प्रदर्शन के लिए ट्रैक्टरों को दिल्ली ले जाने के एकमात्र उद्देश्य से एक सुनियोजित साजिश के तहत ट्रैक्टरों की बिक्री काफी तेजी से बढ़ी.’

पंजाब विधानसभा समिति और दिल्ली पुलिस की तरह ही इस गणतंत्र दिवस दिल्ली में हुई हिंसा का टीवी पर सीधा प्रसारण देखने वाले अनेक लोग भी इस मसले पर बंटे हुए हैं कि वास्तव में हुआ क्या था.

तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों का मानना है कि इन क़ानूनों से उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचेगा इसलिए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति के बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में एक ट्रैक्टर रैली निकालने की योजना बनाई थी. रैली निकालने के लिए एक निश्चित मार्ग तय था, जो दिल्ली पुलिस और किसानों के प्रतिनिधियों की एक समिति द्वारा आपसी सहमति से तय किया गया था.

हालांकि किसानों और उनके समर्थकों के अनुसार, जब वे शहर में रैली के लिए निकले तो पाया कि जो मार्ग रैली के लिए तय किया गया था, उसे पुलिस द्वारा बैरीकेड लगाकर बंद कर दिया गया था इसलिए अपने कैंप में लौटने के बजाय वे रास्ता बदलकर दूसरी सड़कों पर चले गए और उनमें से कुछ लाल किले पहुंच गए, जहां स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराया जाता है और हर दिन राष्ट्रीय ध्वज फहरता है.

किसानों और उनके समर्थकों ने फिर लाल किले पर झंडा लगाने का एक खाली खंभा देखा और उस पर सिख धार्मिक ध्वज फहरा दिया. इस बीच, लाल किले सहित दिल्ली के कुछ हिस्सों में हिंसा भड़क गई क्योंकि किसानों और उनके समर्थकों के समूह पुलिस से भिड़ गए थे.

जब तक हिंसा समाप्त हुई, तब तक किसान और दिल्ली पुलिस एक-दूसरे पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा चुके थे. उसके बाद पुलिस ने करीब 44 एफआईआर दर्ज कीं और दंगा भड़काने, सार्वजनिक व निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने व पुलिस बल पर हमला करने समेत विभिन्न अपराधों में 150 से अधिक किसानों को गिरफ्तार किया. इनमें ज्यादातर किसान पंजाब के थे.

विरोधी दृष्टिकोण

पंजाब के किसानों और उनके समर्थकों पर दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए अत्याचारों के आरोपों की जांच कर रही पंजाब विधानसभा समिति की अध्यक्षता करने वाले कांग्रेस विधायक कुलदीप सिंह वैद ने द वायर  को बताया कि लाल किले की हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज किए गए ज्यादातर मामले झूठे थे.

वैद कहते हैं, ‘हमारे पास यह मानने  की वाजिब वजह है कि अधिकांश पंजाबी युवा जिन पर आरोप लगाए गए हैं, वे पूरी तरह से झूठे मुकदमों का सामना कर रहे हैं.’

वैद के अनुसार, समिति ने 70 से अधिक ऐसे लोगों के बयान दर्ज किए थे जिन्हें गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद गिरफ्तार किया गया था और बाद में जमानत पर छोड़ दिया गया था, जिससे समिति इस नतीजे पर पहुंची कि किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए 26 जनवरी को एक गहरी साजिश रची गई थी.

वैद ने कहा कि ट्रैक्टर रैली का हिस्सा रहे पंजाबी युवकों ने पहले अलग मार्ग पर जाने की योजना बनाई थी, लेकिन दिल्ली पुलिस ने जानबूझकर उनका रास्ता बदल दिया और उन्हें लाल किले की ओर मोड़ दिया.

वैद कहते हैं, ‘रैली में शामिल ज्यादातर लोग दूर-दराज के गांवों से थे और उन्हें नहीं मालूम था कि वे उस रास्ते पर कहां जा रहे हैं.’वे आगे कहते हैं कि पुलिस का यह दावा सच नहीं है कि किसानों ने लाल किले पर राष्ट्रध्वज का अपमान किया था और वहां कब्जा करने की कोशिश की.

वे कहते हैं, ‘किसी ने भी भारतीय झंडे को नहीं छुआ था और न ही उसकी प्रतिष्ठा को कम करने की कोशिश की थी. उन्होंने बस एक खाली खंभे पर सिख धर्म का झंडा फहराया और परिसर से निकल गए.’

हालांकि, दिल्ली पुलिस की कहानी इससे पूरी तरह अलग है.

पुलिस द्वारा पेश किए गए चालान के मुताबिक, 26 जनवरी को प्रदर्शनकारियों ने ट्रैक्टर रैली के लिए पूर्व निर्धारित मार्ग का अनुसरण नहीं किया था, इसके बजाय दिल्ली में घुसने के लिए बैरीकेड्स तोड़ दिए थे. फिर पुलिस से भिड़ गए और राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न हिस्सों में तोड़-फोड़ की.मई में पेश किए गए आरोप-पत्र में पुलिस ने न केवल नवंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच पंजाब और हरियाणा में ट्रैक्टरों की बिक्री में वृद्धि की ओर इशारा करते हुए लाल किला कब्जाने की साजिश के अपने दावे का समर्थन किया है, बल्कि यह भी दावा किया गया है कि उसके पास आंदोलन के नेताओं के ऐसे कई वीडियो क्लिप हैं जिनमें वे अपने समर्थकों को उनके ट्रैक्टरों की बनावट में कुछ विशेष प्रकार के परिवर्तन करने के लिए उकसा रहे हैं, ताकि पुलिस के लगाए बैरीकेड तोड़े जा सकें.

आरोप-पत्र के मुताबिक, सभी वीडियो गणतंत्र दिवस से पहले बनाए गए थे.

हालांकि, दिल्ली की सीमा पर किसान आंदोलन में समन्वय का काम करने वाले किसान संघों के एक समूह संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के प्रवक्ता जगमोहन सिंह ने द वायर  को बताया कि दिल्ली पुलिस की ट्रैक्टर बिक्री वाली कहानी आधारहीन है.

उन्होंने कहा, ‘यह केवल एसकेएम नेतृत्व को आतंकित करने और उन्हें साजिश में शामिल करने के लिए है.’

जगमोहन ने बताया कि जब गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली के लिए मार्ग तय किया गया था तो वे भी दिल्ली पुलिस से मिलने वाली समिति हिस्सा थे.

वे आगे कहते हैं, ‘लेकिन हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पुलिस ने पूर्व-निर्धारित मार्गों पर बैरीकेड लगा दिए, जिससे किसान अलग रास्ते पर जाने के लिए मजबूर हुए, जिसमें एक लाल किले की ओर जाता था.’

किसानों के तर्क

गणतंत्र दिवस की हिंसा में अपनी बेगुनाही को साबित करने के लिए किसानों द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे तर्कों में से एक है, ‘मजिस्ट्रेट द्वारा की गईं वे टिप्पणियां‘ जिनसे उन्हें जमानत मिली.

उदाहरण के लिए, ट्रैक्टर रैली के बाद भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं में के तहत गिरफ्तार किए गए पंजाब के 10 किसानों के जमानती आदेश में 20 फरवरी 2021 को दिल्ली मेट्रोपॉलिटिन मजिस्ट्रेट आकाश शर्मा ने एक आरोप के संबंध में टिप्पणी की थी, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपियों के खिलाफ आरोपों को गढ़ा गया है क्योंकि आईपीसी की धारा 133 नहीं लगाई जानी चाहिए थी.’

आईपीसी की धारा 133 एक लोकसेवक को उसके कर्तव्य का पालन करने से रोकने के लिए गंभीर चोट पहुंचाने से संबंधित है. 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली में शामिल हुए किसानों के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों में यह एक प्रमुख आरोप था.

जब मजिस्ट्रेट ने पश्चिम विहार पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर क्रमांक 22/21 से संबंधित पुलिस द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्यों को देखा, जो यह साबित करने के लिए पेश किए गए थे कि किसानों ने कुछ पुलिसकर्मियों को गंभीर चोटें पहुंचाई थीं, तो उन्होंने इस ओर इशारा किया कि संबंधित पुलिसकर्मियों की मेडिकल रिपोर्ट के रूप में उपलब्ध कराए गए सबूत यह नहीं दिखाते हैं कि उन पर हमला किया गया था.

इसी ने उन्हें जमानत आदेश में यह लिखने के लिए प्रेरित किया कि आईपीसी की धारा 133 के तहत लगाए गए आरोप गढ़े गए प्रतीत होते हैं.तब से ही यह टिप्पणी ट्रैक्टर रैली में शामिल किसानों द्वारा यह साबित करने के लिए उपयोग की जा रही है कि जिस हिंसा के लिए उनमें से कईयों को गिरफ्तार किया गया था, वह एक सुनियोजित साजिश नहीं थी.

एसकेएम की क़ानूनी शाखा के संयोजक अधिवक्ता प्रेम सिंह भांगु ने द वायर  को बताया कि पुलिस ने दिल्ली की सड़कों से अंधाधुंध तरीके से किसानों को उठाया था और फिर देश और दुनिया की सुर्खियों बटोर चुके 20 नवंबर से शुरू हुए इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए उनके खिलाफ झूठे मुकदमे लगा दिए गए.

प्रेम सिंह पूछते हैं, ‘अगर दिल्ली पुलिस इन आरोपों को लेकर इतनी ही आश्वस्त है तो क्यों नौ महीने बाद भी इन ज्यादातर मामलों में अभी आरोप-पत्र पेश नहीं हुआ है.’

वे आगे कहते हैं, ‘मेरी जानकारी में कथित हिंसा और लाल किले में सिख धार्मिक ध्वज फहराने के संबंध में नौ महीने पहले पुलिस द्वारा दर्ज की गई 44 एफआईआर में से अब तक सिर्फ एक में आरोप-पत्र पेश हुआ है. उन्हें आरोप-पत्र पेश करने दीजिए, फिर हम उन्हें क़ानूनी चुनौती देंगे और इन एफआईआर को रद्द कराने के लिए उच्च अदालतों में भी जाएंगे.’

भांगु के आरोपों के जवाब में दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता चिन्मॉय बिस्वाल ने द वायर  को बताया कि पुलिस किसान आंदोलनकारियों द्वारा लगाए गए हर आरोप पर प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य नहीं है.

बिस्वाल ने कहा, ‘वे समय-समय पर नये-नये दावे करते रहते हैं. मेरे पास अभी सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन उन मामलों में जरूर जांच चल रही होगी जिनमें आरोप-पत्र पेश किए जाने का इंतजार है.’

हमें झूठा फंसाया गया है’

दिल्ली पुलिस द्वारा गणतंत्र दिवस की हिंसा के लिए गिरफ्तार किए गए 150 प्रदर्शनकारियों में पंजाब के फिरोजपुर जिले के जीरा शहर के 20 वर्षीय हरप्रीत सिंह भी थे.

हरपीत सिंह ने द वायर  को बताया, ‘गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली के दौरान हम शांतिपूर्वक दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे. हम दिल्ली पुलिस के साथ किसी भी प्रकार की हिंसा या झगड़े में शामिल नहीं थे. न ही हमने किसी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.’

हरपीत ने बताया कि उस दिन शाम चार बजे के करीब प्रदर्शनकारियों से सिंघू बॉर्डर लौटने के लिए कहा गया.

इसके बाद का घटनाक्रम समझाते हुए हरपीत कहते हैं, ‘जब हम वापस जाने के लिए ऑटो-रिक्शा देख रहे थे, तभी हमने एक निजी बस देखी जिसमें हमारे कुछ पंजाबी भाई पहले से ही बैठे थे, इसलिए हम बस में चढ़ गए.’

वे आगे बताते हैं, ‘बाद में मुझे एहसास हुआ कि बस एक पुलिस वाहन था जो अलग-अलग जगहों से प्रदर्शनकारियों को पकड़ रहा था. मुझे पश्चिमी दिल्ली के एक पुलिस थाने ले जाया गया और फिर मेरे खिलाफ मामला दर्ज करके तिहाड़ जेल भेज दिया गया.’

हरपीत पर दंगा, मारपीट, साजिश रचने और महामारी रोग अधिनियम व आपदा प्रबंधन अधिनियम के उल्लंघन से संबंधित 14 अपराधों से संबंधित आरोप हैं.

लुधियाना जिले के बंसीपुरा गांव के 30 वर्षीय किसान प्रदीप सिंह का भी दावा है कि उन्हें झूठा फंसाया गया है.

उन्होंने द वायर  को बताया कि 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के एक दिन बाद वे और कुछ अन्य लोग दिल्ली के विभिन्न पुलिस थानों में उन प्रदर्शनकारियों की खोजबीन के लिए गए थे, जो रैली के बाद सिंघू बॉर्डर वापस नहीं लौटे थे.

उनका दावा है, ‘थाने पहुंचने पर हमें वहां से जाने नहीं दिया गया. कुछ देर बाद हमें गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया गया.’

वैद के अनुसार, पंजाब विधानसभा की समिति ने राज्य सरकार से सिफारिश की है कि उसे इन मामलों को वापस लेने का मुद्दा केंद्र के समक्ष उठाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों पर इन मामलों में आरोप लगाया गया है, उन्हें सरकार की ओर से मुफ्त कानूनी मदद, वित्तीय सहायता व मुआवजा भी दिया जाना चाहिए क्योंकि झूठे मामलों में फंसाने के बाद किसानों के साथ जेलों में बुरा व्यवहार किया गया था.’

वैद आगे कहते है, ‘हमने अपनी रिपोर्ट कई और भी सिफारिशें की हैं. लेकिन संभवत: अगले विधानसभा सत्र में विधानसभा के पटल पर पेश करने से पहले रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है.’

विधानसभा समिति में कांग्रेस विधायक कुलबीर सिंह जीरा और फतेहजंग सिंह बाजवा, आम आदमी पार्टी के विधायक सरबजीत कौर मनुके और शिरोमणि अकाली दल के विधायक हरिंदर पाल सिंह चंदूमाजरा शामिल थे.

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