तेलंगाना हाईकोर्ट ने बच्ची से बलात्कार एवं हत्या के आरोपी की मौत की न्यायिक जांच का आदेश दिया

 


हैदराबाद में छह साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या करने का आरोपी पी. राजू बीते 16 सितंबर को रेलवे पटरी पर मृत पाया गया था. तेलंगाना पुलिस ने दावा किया कि उसकी मौत आत्महत्या से हुई है. आरोपी के परिवार के सदस्यों ने दावा किया कि संभवत: उसकी हत्या कर दी गई है.


 

हैदराबाद: तेलंगाना हाईकोर्ट ने छह साल की एक बच्ची के साथ बलात्कार एवं उसकी हत्या के मामले के आरोपी पी. राजू द्वारा कथित रूप से आत्महत्या कर लेने की न्यायिक जांच का शुक्रवार को आदेश दिया.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस टी. अमरनाथ गौड़ की पीठ तेलंगाना सिविल लिबर्टीज (सीएलसी) के अध्यक्ष गद्दाम की याचिका पर यह आदेश दिया.

मालूम हो कि हैदराबाद में छह साल की बच्ची के साथ कथित तौर पर बलात्कार और हत्या करने वाला पी. राजू बीते 16 सितंबर को वारंगल के पास घनपुर में रेलवे पटरी पर मृत पाया गया था. तेलंगाना पुलिस ने दावा किया था कि उसकी मौत आत्महत्या से हुई है.

पीठ याचिका पर तात्कालिकता के आधार सुनवाई कर रही है, जिसमें इस मौत की न्यायिक जांच की मांग की गई है.

पीठ ने वारंगल की एक अदालत को इस घटना की जांच करने और चार सप्ताह में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया.

अदालत ने राज्य सरकार को भी मृतक के शव के पोस्टमार्टम का वीडियो वारंगल के प्रधान जिला न्यायाधीश को सौंपने का निर्देश दिया.

याचिकाकर्ता ने मृतक के रिश्तेदार को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी अनुरोध किया है.

राजू की मौत से दो दिन पहले 14 सितंबर को तेलंगाना के श्रम मंत्री सी. मल्ला रेड्डी ने कहा था कि इस मामले में आरोपी को पकड़ा जाएगा और उसके ‘एनकाउंटर’ की भी उन्होंने धमकी दी थी.

आरोपी के परिवार के सदस्यों ने दावा किया कि संभवत: उसकी हत्या कर दी गई है. हालांकि पुलिस ने कहा कि यह आत्महत्या थी.

नौ सितंबर की शाम हैदराबाद जिले के सैदाबाद में बच्ची का कथित तौर पर बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी गई थी. इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए थे. उन्होंने दोषी को जल्द से जल्द गिरफ्तार किए जाने की मांग की थी.

इस बीच तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक एम. महेंद्र रेड्डी ने संवाददाता सम्मेलन में इस आत्महत्या को राज्य सरकार की मनगढंत कहानी करार देने के आरोप का खंडन करते हुए कहा, ‘सात गवाह हैं जिनके बयान दर्ज किए गए हैं. हमें और किसी सबूत की जरूरत नहीं है. झूठ बोलने की जरूरत ही नहीं है. इस घटना के बारे में लोगों के दिमाग में झूठी धारणा पैदा करना सही नहीं है.’

कार्यकर्ताओं ने पुलिस के बयान पर संदेह जताया है, क्योंकि इससे पहले मंत्री की टिप्पणी थी कि बलात्कार और हत्या के आरोपी को मुठभेड़ में मार दिया जाना चाहिए.

महिला और ट्रांसजेंडर संगठनों की संयुक्त कार्रवाई समिति (डब्ल्यूटी-जेएसी) ने तेलंगाना हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें राजू की मौत की न्यायिक जांच की मांग की गई है.

कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने आरोपी पी. राजू के शव का जल्दबाजी में अंतिम संस्कार न करने का आग्रह किया था, जब तक कि फोरेंसिक विशेषज्ञों और अटॉप्सी सर्जनों की एक विशेष टीम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के दिशानिर्देशों के अनुसार एक स्वतंत्र पोस्टमार्टम न करे.

याचिका पर सुनवाई से पहले 16 सितंबर की रात वारंगल में आरोपी के शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया. शहर के महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) अस्पताल में पोस्टमार्टम किया गया. रिपोर्ट की एक प्रति शनिवार को वारंगल जिला न्यायाधीश को सौंपी जाएगी, जिसे तेलंगाना हाईकोर्ट को भेजा जाएगा.

कार्यकर्ता अब इसे सबूत मिटाने की कार्रवाई के तौर पर देख रहे हैं.

द न्यूज मिनट्स की रिपोर्ट के अनुसार, डब्ल्यूटी-जेएसी से जुड़ीं मीरा संघमित्रा ने कहा, ‘राजू के शव का जल्दबाजी में गुरुवार को तेलंगाना पुलिस द्वारा अंतिम संस्कार कर दिया गया. लेकिन उसकी गिरफ्तारी की परस्पर विरोधी आधिकारिक रिपोर्टों के साथ देखा जाए तो यह अत्यधिक संदेहजनक है.’

उन्होंने कहा, ‘तेलंगाना पुलिस ने जिस तरह से बलात्कार और हत्या के आरोपी के शव का अंतिम संस्कार किया, पिछले कुछ दिनों में उसकी खोज और उसके रहस्यमय तरीके से गायब होने की परस्पर विरोधी आधिकारिक रिपोर्ट, उसके बाद उसकी तलाशी और पुरस्कार राशि की घोषणा, श्रम मंत्री मल्ला रेड्डी और सांसद रेवंत रेड्डी द्वारा आरोपी की न्यायेत्तर हत्या का आह्वान करना और उसकी रेल पटरी पर अचानक आत्महत्या से मौत बेहद संदिग्ध है.’

उन्होंने कहा, ‘राजू की मां, पत्नी और बहन का यह आरोप कि यह ‘पुलिस द्वारा की गई हत्या’ का मामला है, कानून प्रवर्तन अधिकारियों की भूमिका और पालन की जाने वाली प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल उठाता है. इसके लिए राज्य हाईकोर्ट के साथ-साथ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा व्यापक जांच की आवश्यकता है.’

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