जल जीवन मिशन के घोटालेबाज़ अधिकारियों की बढ़ी मुश्किलें, लोकायुक्त ने बढ़ाई जाँच

 


लखनऊ :  केंद्र सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट मिशन जल जीवन देश के कई राज्यों में अफसरों की कमाई का जरिया बन गया। छत्तीसगढ़ में तो घोटाले का मामला सामने आते ही सभी टेंडर रद्द कर दिए गए और जांच के आदेश दिए गए। बिहार में भी नल से जल की जगह पैसे बरसने की शिकायतें आईं पर सरकार ने अभी तक कोई जांच नहीं बिठाई। उत्तर प्रदेश में केंद्र की गाइडलाइन और राज्य सरकार के आदेशों के बावजूद राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन का रजिस्ट्रार चिट्स फंड एंड सोसायटीज् के दफ्तर में पंजीकरण तक नहीं कराया गया। उसके बाद बिना एस्टीमेट के टेंडर जारी किए गए। गांव पंचायतों और जिला स्तर पर बनी समितियों की बिना सहमति के ही ठेकेदारों का चयन स्टेट लेवल से ही किया गया और अनुबंध पर त्रिपक्षीय समझौतों के लेकर अधिशाषी अभियंताओं की वित्तीय पॉवर भी आनन फानन में बढ़ाई गई यही नहीं कई इंजीनियरों की शिकायत के बाद जल निगम की दरें भी नए सिरे से तय कराई गईं। इसके पहले जो टेंडर स्वीकृत किए गए थे उनकी दरें जल निगम से 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ी हुई थीं। यही नहीं कार्यों के थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन में भी जमकर लूट की गई। देश के कई राज्यों में टीपीआई की दरें 0.5 प्रतिशत से अधिक नहीं रहीं बावजूद इसके यहां टीपीआई की दरें 1.33 प्रतिशत तक रखी गईं इससे सरकार को करीब हजार करोड़ का चूना लगा।

 


जल जीवन मिशन में कई लेवल पर भ्रष्टाचार किए गए। अभी जल जीवन मिशन का काम भले ही जमीन पर नहीं दिख रहा है पर कागजों पर बहुत तेजी से दौड़ रहा है। जितनी तेजी से मिशन के काम दौड़ रहे हैं उतनी ही तेजी से एक के बाद एक घोटाले भी उजागर होते रहे हैं।

घोटालों की बानगी के रूप में बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में डैम पर आधारित पाइप पेयजल योजनाओं के अंतर्गत भी बड़ा घोटाला किया गया। दोनों ही मंडलों में करीब 48 योजनाएं डैम पर आधारित पेयजल आपूर्ति की चल रही हैं। जल शोधन संयंत्रों की योजनाओं के लिए जो प्राक्कलन (एस्टीमेट) बनाया गया वो राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन के अधिकारियों द्वारा बनाया गया। प्राक्कलन को अपर मुख्य सचिव वित्त की अध्यक्षता में विभिन्न बैठकों में 48 योजनाओं की स्वीकृति प्रदान की गईं। इसके बाद राज्य पेयजल एवं स्वच्छता मिशन द्वारा विभिन्न निविदाओं द्वारा 48 पेयजल योजनाओं के लिए टेंडर प्राप्त एवं स्वीकृत किए गए। इस तरह ठेकेदारों को आवंटित किए गए टेंडरों में कामों की दरें प्राक्कलन समितियों की स्वीकृत दरों से दोगुनी हो गईं। मसलन प्राक्कलन के मुताबिक 5 एमएलडी ( मिलियन लीटर पर डे) पर आने वाला खर्च 40 लाख रूपए पर एमएलडी के हिसाब से लगाया गया जबकि टेंडर के समय इसकी दर 75 लाख रूपए पर एमएलडी हो गई। कुल 48 योजनाओं में इस तरह लगभग दोगुने रेट पर ठेकेदारों को टेंडर देने से जल जीवन मिशन को करीब 200 करोड़ की अतिरिक्त चपत लगाई गई। मतलब जहां महंगा काम कराने से मिशन को करोड़ों का नुकसान हो रहा है वहीं चंद अधिकारियों को इससे मोटा कमीशन भी प्राप्त हुआ। इसी तरह चहेती कंपनियों के चयन में भी बार बार टेंडर को निरस्त करने और उसमें बदलाव भी किए गए। मिशन के कामकाज को लेकर कई बार कई इंजीनियरों ने ही सवाल खड़े किए किसी ने वित्तीय पॉवर को लेकर सवाल उठाए तो किसी ने त्रिपक्षीय अनुबंध को लेकर यही नहीं अमरोहा के आकाश जैन ने तो ये भी खुलासा कर दिया था कि कैसे गांव वालों को नल का कनेक्शन लेने के लिए करीब 6 हजार रूपए तक देने पड़ेंगे और साथ ही 2500 रूपये पानी के लिए भी हर साल होंगे। इस तरह बेस लाइन सर्वे से लेकर डैम ट्यूबवेल टंकी पाइप लाइन बिछाने तक में जमकर भ्रष्टाचार किया गया। सबसे बड़ी बात रही कि भ्रष्टाचार को सीधे एसडब्ल्यूएम से ही अंजाम दिया गया और ऊपर के ही अफसरों ने सारी मलाई खाई। जल जीवन मिशन में हुए भ्रष्टाचार के आरोप जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह प्रमुख सचिव अनुराग श्रीवास्तव मिशन के चीफ इंजीनियर आलोक सिन्हा कोआर्डिनेटर जीपी शुक्ला और अधिशाषी निदेशक पूर्व सुरेंद्र राम और मौजूदा अखण्ड प्रताप सिंह पर लग रहे हैं। मिशन में घोटाले की तमाम शिकायतें विभागीय आला अफसरों से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री के साथ ही केंदीय जलशक्ति मंत्री और प्रधानमंत्री तक को की गई पर कहीं से भी इस मामले में कोई जांच तक के आदेश नहीं किए गए। मामला विधान परिषद् में भी उठा पर फिर भी सरकार ने कोई जांच नहीं कराई। जब मामला लोकायुक्त के यहां पहुंचा तो वहां से संबंधित अधिकारियों को नोटिस भेजकर सभी आरोपों के विषय में लिखिल जवाब मांगा गया। मिशन निदेशक अखंड प्रताप सिंह की तरफ़ से जो जवाब दिया गया उसको काउंटर करते हुए शिकायतकर्ता संजय श्रीवास्तव की तरफ़ से १३६ पेज के प्रति उत्तर में तथ्यों और साक्ष्यों को आधार बनाकर लोकायुक्त के समक्ष दाखिल किया गया।

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