आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में गाज़ियाबाद स्थित पावन चिंतन धारा आश्रम द्वारा विश्वविख्यात संत एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर परमपूज्य डॉ. पवन सिन्हा ‘गुरूजी’ के मार्गदर्शन में गाज़ियाबाद शहर में आज तिरंगा यात्रा निकाली गयी। यात्रा दुर्गा भाभी चौक, नवयुग मार्किट से प्रारम्भ होकर अग्रसेन बाज़ार होते हुए घंटाघर रामलीला मैदान तक पहुंची जहाँ जानकी भवन में यात्रा का समापन समारोह हुआ । तिरंगा यात्रा का शुभारम्भ यात्रा में उपस्थित गणमान्यों में माननीय सांसद (राज्यसभा) डॉ अनिल अग्रवाल जी, महापौर श्रीमती आशा शर्मा जी, विधायक श्री अतुल गर्ग जी, विधायक अजीतपाल त्यागी जी तथा वीर चक्र प्राप्त कर्नल टीपी त्यागी जी ने हरी झंडी दिखा कर किया ।
यात्रा का स्वागत – भारतीय उद्योग व्यापार मंडल , अंतर्राष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन के सदस्यों द्वारा नवयुग मार्किट, चौपला, पुरानी मुंसिफी, घंटाघर एवं गोल मार्किट में पुष्पवर्षा कर भव्य स्वागत किया गया इस यात्रा में देश के विभिन्न शहरों से लगभग २०० से २५० लोगों ने भाग लिया । साथ ही आश्रम के बच्चों एवं साधकों द्वारा गुजराती, बंगाली, उत्तराखंड , महाराष्ट्र एवं पंजाबी नृत्यों की प्रस्तुति भी की गयी जिससे युवाओं में भारतीय संस्कृति को समझ सकें। बड़ी संख्या में लोग देश के विभिन्न राज्यों उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा, असम के परिधानों में सजे धजे भारत माँ के जयघोष करते दिखे । जहाँ सारा क्षेत्र “हमारा तिरंगा हमारी शान, हमारा भारत हमारी जान”, “हर घर तिरंगा लहरायेंगे, आजादी का महोत्सव मनाएंगे” तथा “एक संकल्प एक ही लक्ष्य, विश्वगुरु हो भारतवर्ष” जैसे नारों के साथ गुंजायमान हो गया। क्या युवा क्या बच्चे क्या बूढ़े सबका जोश देखते ही बनता था ।
श्रीगुरुजी ने कहा कि आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने का उत्सव, ऐसा संयोग सभी के जीवन में एक बार ही आता है। अत: देश के प्रत्येक नागरिक को इस अवसर को पुरे उत्साह और उल्लास के साथ मनाना चाहिए। श्री गुरुजी ने अपनी बात तिरंगे के इतिहास से शुरू की। उन्होंने बताया कि सबसे पहले भारत को तिरंगा स्वामी विवेकानंद जी की शिष्या ने 1904 में दिया, जिसमे 'वज्र और कमल' होते थे। वज्र शौर्य और कमल पवित्रता का प्रतीक हुआ करता था यही ध्वज उसी समय फहराया भी गया। उसके बाद से तिरंगे में अनेक लोगों ने अनेक परिवर्तन किये। उसके बाद 1906 में कोलकाता में एक ध्वज फहराया गया जिसमें तीन पट्टियां थीं तथा बीच मे वन्देमातरम लिखा हुआ था। फिर 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने कुछ क्रांतिकारियों के साथ जर्मनी में झंडा फहराया। इसके दस वर्ष बाद एक अन्य ध्वज फहराया गया जिसमें ऊपर 5 लाल नीचे 5 हरि पट्टियों के बीच 7 सितारे थे जो सप्तऋषि का प्रतीक थे। गांधी जी ने 1931 में तिरंगा तैयार करवाया जिसमे बीच मे चरखा हुआ था था उस तिरंगे को कांग्रेस अधिवेशन में सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। वर्तमान तिरंगा 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया। जिसमे ऊपर केसरिया, बीच मे सफेद, नीचे हरा रंग तथा बीच मे अशोक चक्र रहा। यह चक्र वीर सावरकर जी का विचार था। कुछ लोग इन रंगों को हिन्दू मुस्लिम से जोड़ते हैं जो गलत है क्योंकि भारतीय तिरंगा शौर्य, शांति तथा कृषि का प्रतीक है। वास्तव में कोई भी ध्वज बहुत बड़े अर्थ को लिये होता है, भारत जैसे विशाल देश की सरंचना अनेक धर्मो से जुड़ी हुई है। भारत मे केवल दो रंग हो भी नही सकते। श्रीगुरुजी ने आगे बात करते हुए कहा कि 2002 नियम के तहत अब कोई भी, कभी भी राष्ट्रध्वज को अपने घर मे, कार्यलय में, कार्यक्रम में फहरा सकता है। परंतु किसी भी रूप में राष्ट्रध्वज का अपमान दण्डनीय अपराध है। भारत मे पिछले एक सप्ताह में कई स्थानों पर तिरंगे का अपमान करने की घटनाएं सम्मन आयी हैं जो निंदनीय है। लोगों को समझना होगा कि भारतीय बन कर जीने का गौरव सबसे बड़ा सौभाग्य है और भारत के संविधान तथा स्वाभिमान की हम सबको रक्षा करनी होगी।
यात्रा रामलीला मैदान में भारत माँ की आरती कर पूर्ण हुई ।
कार्यक्रम में गुरुमां तथा आश्रम सचिव डॉ कविता अस्थाना जी तथा शहर के बहुत से गणमान्यों ने सहयोग किया जिनमे श्री अनिल अग्रवाल ‘सांवरिया’, श्री आशुतोष गुप्ता ‘बिन्दल्स’, संजीव मित्तल, श्री देवेन्द्र हितकारी जी भी रहे। इस समापन समारोह में युवा अभ्युदय मिशन के राष्ट्रीय समन्वयक श्री गर्वित विज, ऋषिकुलशाला की समन्वयक डॉ उषा शर्मा जी भारतीय ज्ञान शोध संस्थान के शिक्षा शोधविभाग की समन्वयक ज्योति देसवाल, यंग मूव्स मीडिया (यूट्यूब चैनल) की पलक अग्रवाल ने भी देश के आज के हालातों और भविष्य के प्रति अपने विचार व्यक्त किये कार्यक्रम का संचालन श्री रोहित केसरी जी ने किया ।