राहुल गांधी का भाषण नहीं, मोदी सरकार का कामकाज दुनिया में भारत की बदनामी की वजह है

 


अगर मोदी सरकार झूठ का डंका बजाकर सच को छिपाना चाहती है, तो क्या वह देश का भला कर रही है? अगर सच बोलने पर ‘देश पर हमला होने’ जैसे आरोप लगें तो इसे देश को आबाद करने का तरीका कहा जाएगा या बर्बाद करने का?देश की बदनामी कब होती है? क्या देश की बदनामी तब होती है जब सरकार के बेकार कामकाज के चलते देश बर्बादी के रास्ते पर चल निकल पड़ता है या तब होती है जब देश को बर्बादी के रास्ते से बचाने के लिए खामियों को सच की तरह पेश किया जाता है.

राहुल गांधी ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में नरेंद्र मोदी से ठीक उल्टी शैली में यानी बिना झूठे घमंड के मौजूदा वक्त की खामियों को उजागर करते हुए नरेंद्र मोदी के दौर में देश के लोकतंत्र की दुर्गति पर भाषण दिया तो भाजपा की तरफ केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने प्रतिक्रिया दी कि राहुल गांधी ने विदेश की धरती पर जाकर देश को बदनाम करने का काम किया है. इसी तरह से भाजपा की तरफ से कई नेताओं ने भी बयान दिया है जिनके मुताबिक राहुल गांधी के भाषण ने आबाद भारत को बर्बाद भारत बताया है.इसी को संदर्भ बनाकर दुनियाभर के तमाम वैश्विक मानकों पर देखते हैं कि नरेंद्र मोदी के दौर में भारत का क्या हाल रहा है? भारत आबाद होने के रास्ते पर चल रहा है या बर्बाद होने के? भारत की असली बदनामी का कारण मोदी सरकार का कामकाज है या राहुल गांधी का कैंब्रिज में दिया गया भाषण?

साल 2022 में प्रकाशित ग्लोबल प्रेस फ्रीडम रैंकिंग में भारत साल 2021 में दुनिया के 180 देशों के बीच 150वें पायदान पर था. जबकि साल 2016 में भारत की रैंकिंग 133वीं थी. साल 2020 में भारत 142वें पायदान पर था. तब इस रिपोर्ट में जिक्र किया था कि पत्रकारिता की दुनिया में भारत बैड यानी खराब कैटेगरी वाले देश में आता है.

पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है. साल 2022 में प्रकाशित ग्लोबल प्रेस फ्रीडम रैंकिंग से जुड़ी रिपोर्ट में कहा था कि साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पत्रकारों पर हिंसा के मामले बढ़ते चले गए हैं. मीडिया संस्थान राजनीतिक पक्षधरता का खुलेआम इस्तेमाल करते हैं. सरकार अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए मीडिया संस्थानों पर हजारों करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है. मीडिया पर एक खास वर्ग का मालिकाना हक बढ़ता चला जा रहा है.

यह भारत में मीडिया संकट की स्थिति को दर्शाता है. ग्लोबल फ्रीडम इंडेक्स में जब भारत की ऐसी स्थिति है तो आप खुद ही बताइए कि इस विदेशी रिपोर्ट में भारत की बदनामी का असली कारण क्या है? भारत की बदनामी किसकी वजह से हो रही है? ज्यादा दूर नहीं, बस राहुल गांधी के भाषण पर ही मुख्यधारा के तमाम टीवी चैनलों के प्रोग्राम की हेडिंग देखिए. भारत महान राहुल करे बदनाम, दुनिया बोले भारत आबाद, राहुल क्यों बोले भारत बर्बाद, विदेश में देश का अपमान क्यों? इस तरह की खबरिया हेडिंग क्या भारत की आबादी की कहानी को बताता है या बर्बादी की कहानी को?

भुखमरी पर पेश होने वाली ग्लोबल हंगर रिपोर्ट में भारत दुनिया के 121 देशों के बीच में 107वें पायदान पर है. इस रिपोर्ट में श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, नेपाल भी भारत से आगे हैं. दो साल से भारत सरकार इस रिपोर्ट को यह कहकर खारिज कर रही है कि भुखमरी को मापने का तरीका ठीक नहीं. भुखमरी की रिपोर्ट में इतने पीछे होने का मतलब यह है कि समुचित मात्रा में खाना देने, ऊंचाई के मुताबिक वजन होने, उम्र के मुताबिक ऊंचाई होने और 5 वर्ष से कम बच्चों की मृत्यु की संख्या के मामले में भारत की स्थिति दुनिया के तकरीबन 106 मुल्कों से बदतर है.

ध्यान दीजिएगा कि यह स्थिति तब है जब भारत में 80 करोड़ लोगों को भारत सरकार दो वक्त का मुफ्त खाना देती है. इस योजना के बाद भी भुखमरी के मामले में भारत की इतनी बड़ी बदहाली बताते हैं कि भारत की बहुत बड़ी आबादी का जीवनयापन को ठीक करने में सरकार पूरी तरह से असफल रही है. अब आप खुद सोचिए ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107वें पायदान पर होना विदेशी धरती पर भारत की बदनामी का कारण है या राहुल गांधी का भाषण? क्या भुखमरी के ऐसे हालत पर दुनिया भारत को आबाद देश कहेगी या बर्बाद देश?

दुनियाभर की औरतों के हालात पर ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट पेश की जाती है. औरतों की राजनीतिक भागीदारी, आर्थिक हैसियत, शिक्षा का स्तर, स्वास्थ्य और संघर्ष को पैमाना बनाकर यह रिपोर्ट तैयार की जाती है. इस रिपोर्ट में भारत दुनियाभर के 146 देशों के बीच 135वें पायदान पर है. भारत में औरतों के इन हालात से दुनिया में होने वाली बदनामी के लिए क्या राहुल गांधी का भाषण जिम्मेदार हो सकता है?

स्वास्थ्य शिक्षा और जीवन स्तर जैसे तकरीबन 10 बुनियादी पैमानों को आधार बनाकर ग्लोबल मल्टीलेवल पॉवर्टी इंडेक्स निकाला जाता है. मल्टीलेवल पॉवर्टी के अंतर्गत भारत के तकरीबन 22 करोड़ लोग आते हैं. यह संख्या दुनियाभर में सबसे ज्यादा हैं. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती हैं. अब बताइए अगर बदहाली बदनामी का कारण बनती तो दोषी राहुल गांधी का भाषण होना चाहिए या अनुराग ठाकुर की पार्टी का कामकाज?

सांप्रदायिक तनाव के मामले में प्यू रिसर्च के मुताबिक इंडिया सोशल होस्टिलिटी इंडेक्स में मैक्सिमम पॉसिबल स्कोर 10 में 9.4 है. भारत सामुदायिक शत्रुता के मामले में बांग्लादेश, इजिप्ट, पाकिस्तान, नाइजीरिया के साथ वेरी हाई कैटगरी वाले देश में शामिल है. जिन सवालों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की जाती है, उन सवालों में पूछा जाता है कि क्या धार्मिक आधार पर भेदभाव होता है? क्या धार्मिक आधार पर कट्टरता को सहन करना पड़ता है? क्या धार्मिक आधार पर डराया, धमकाया जाता है? क्या धार्मिक आधार पर भीड़ गोलबंद होकर के हिंसक कामों को उकसावा देती है. इन सारे सवालों पर मिले जवाबों के आधारों पर भारत दुनिया के सबसे ज्यादा कट्टर मुल्कों में शामिल है.

ऐसी परिस्थिति किसने बनाई है? सोचिए कि ऐसे बुरे माहौल के लिए जिम्मेदार कौन है? राहुल गांधी का भाषण या केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का ‘गोली मारो… ‘ जैसा बयान. देश में नफरत के बीज वो लोग बोते हैं जो सच परोसते हैं या वे लोग जिनकी पार्टी अनुराग ठाकुर जैसे लोगों से बनी है?

इसी तरह से तमाम ग्लोबल इंडेक्स का हिसाब किताब देखते चलिए. इन्तेर्नतिओन इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी इंडेक्स के मामले में भारत 2014 में 25वें नंबर पर था. 2022 में लुढ़ककर दुनिया के 55 देशों के बीच 42वें नंबर पर पहुंच गया. यानी भारत की तरफ से मानव कल्याण के लिए नई चीजें पहले से भी कम बन रही हैं.

नरेंद्र मोदी के भाषणों में स्मार्ट सिटी का नाम आपने खूब सुना होगा. साल 2015 में नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि अगले 5 साल में भारत के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी में तब्दील कर दिया जाएगा. साल 2015 के बाद 5 साल यानी साल 2020 जा चुका है. नरेंद्र मोदी ने अब इसके बारे में बात करनी ही बंद कर दी.

साल 2019 से ग्लोबल स्मार्ट सिटी इंडिया की गणना शुरू की गई. इसमें भारत की तरफ से बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद को शामिल किया गया. बेंगलुरु तब 79वें पायदान पर था. अब 93वें पर आ गया है. मुंबई 78वें स्थान पर था, जो आज 90वें पर पहुंच गया है. दिल्ली 68 से 89वें स्थान पर चला गया है और हैदराबाद 67 से 92 पर. सरकार के कारिंदे यह हकीकत तो बताएंगे नहीं उल्टा अगर सच की आवाज थोड़ी तेज हुई तो भारत पर हमला और बदनामी कहकर खारिज करने लगते हैं. सोचिए, एक सजग नागरिक होने के नाते आपको क्या चाहिए?

तमाम देशों की सरकारों के जरिये दुनिया में जितनी बार इंटरनेट बंद किया गया उसका आधे से ज्यादा हिस्सा मोदी सरकार के इंटरनेट बंद करने के आदेश से जुड़ा है. वह उस देश का हाल है जहां के नेता खुद को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहलवाने के लिए बेताब रहते है.

कानून के शासन की हालत देखिए. भारत में इसके अनगिनत उदाहरण है जो यह बताते हैं कि जांच एजेंसियां तहकीकात के नाम पर वही कर रही हैं जो सरकार उनसे करने को करती हैं. पेगासस का मामला देखिए. राहुल गांधी ने कहा कि पेगासस का इस्तेमाल करके उनकी भी जासूसी की जा रही है. भाजपा की तरफ से कहा गया कि राहुल गांधी के दिल और दिमाग में पेगासस बस चुका है. जबकि हकीकत यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले पर कहा था कि सरकार ने सहयोग नहीं किया. यह बात क्या बताती हैं? क्या ऐसी सरकार का कामकाज देश के बदनामी का कारण बन सकता है?

ऐसे तमाम कार्यकर्ता हैं जिन पर गलत आरोप लगाकर जेल में लंबे समय के लिए कैद कर दिया गया है. संस्थाएं स्वतंत्र होनी चाहिए मगर उनकी स्वतंत्रता मोदी सरकार के यहां गिरवी रख दी गई है. ग्लोबल रूल ऑफ लॉ इंडेक्स के मामले में भारत 66वें नंबर से खिसककर 75 वें नंबर पर चला गया है.

भारत के आर्थिक जगत का हाल भी बदतर होते जा रहा है. कई जानकार कहते हैं कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां चंद पूंजीपतियों को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं. इन्होंने नाजायज सरकारी मदद हासिल कर अकूत और अथाह कमाई की है. नहीं तो आर्थिक जगत का हाल ऐसा है कि ग्लोबल इकोनॉमिक फ्रीडम इंडेक्स में भारत 120वें स्थान से 131वें पायदान पर पहुंच गया है. यानी आर्थिक जगत को नियंत्रित करने वाले रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का हाल पूरी तरह से बेहाल है.

पर्यावरण से जुड़े ग्लोबल रिपोर्ट में तो हद ही पार हो गई है. 40 मापदंडों पर बनने वाले इस एनवायरमेंटल परफारमेंस इंडेक्स में भारत 180 देशों में आखिरी पायदान पर है.

अगर तमाम ग्लोबल पैमानों पर भारत पीछे खड़ा है तो खुशी के पैमाने पर आगे कैसे खड़ा हो सकता है?  वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत 139 देशों के बीच में 136वें नंबर पर है. दक्षिण एशिया की बात करें, तो वो केवल तालिबान शासित अफगानिस्तान से ही पीछे है.

विश्व की यह तमाम रिपोर्ट यही बताती हैं कि राहुल गांधी ने कैंब्रिज में जो कहा उन बातों की पुष्टि स्थापित तथ्य और दुनिया की रिसर्च रिपोर्ट भी करती है. पूरी दुनिया उन खामियों के बारे में जानती हैं जिनका जिक्र राहुल गांधी ने कैंब्रिज में दिए भाषण में किया. अगर इन खामियों से बदनामी होती है तो इसकी जिम्मेदारी राहुल गांधी कि नहीं बल्कि मोदी सरकार की है. सरकार के कारनामों की बदौलत भारत आज तमाम वैश्विक पैमानों पर पीछे खड़ा दिख रहा है.

इन वैश्विकआंकड़ों को सुनने के बाद कोई यह कह सकता है कि हर देश की अपनी अलग परिस्थिति है, उस हिसाब से वह प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है. इसलिए दूसरे देशों से तुलना करने की जरूरत नहीं. यह बात एक लिहाज से ठीक है. मगर उसी व्यक्ति से यह पूछना चाहिए कि अगर मोदी सरकार खुद को विश्वगुरु बताने पर तुली हो तो क्या उसे सच का आईना नहीं दिखाया जाना चाहिए?

अगर मोदी सरकार झूठ का डंका बजाकर सच को छिपाना चाहती हो तो क्या वह देश का भला कर रही है? अगर सच बोलने पर ‘देश पर हमला होने’ जैसे आरोप लगें तो इसे देश को आबाद करने का तरीका कहा जाएगा या बर्बाद करने का?

किसी देश का निर्माण इस बुनियाद पर टिका होता है कि उस देश के अगुआ यानी उसके नेता किस तरह की अभिव्यक्ति, चर्चा और प्रतिक्रियाओं को जन्म दे रहे हैं. भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि वह हर जायज सवाल और आलोचना को देश पर हमला बताकर खारिज करती है. इससे देश का निर्माण नहीं होता.

यहां समझने वाली बात यह भी है कि हर जायज सवाल और आलोचना पर ‘देश पर हमला’ जैसे जुमले का इस्तेमाल भाजपा के प्रवक्ता इसलिए नहीं करते कि वे नासमझ हैं.वे बहुत सोच-समझकर ऐसा इसलिए करते हैं ताकि देश में सवाल और आलोचना करने वालों के प्रति घृणा और नफरत का माहौल बरकरार रहे, जिस पर चुनावी रोटी सेंकी जा सकें.

हर जायज सवाल और आलोचना को देश पर हमला बताना देशप्रेमियों नहीं बल्कि देश बर्बाद करने वालों का काम है. कहीं ऐसा तो नहीं कि भाजपा को यकीन हो चला है कि हर सच को देश पर हमला कहकर जनता को बरगलाया जा सकता है. अगर भाजपा को यह यकीन हो चला है तो भारत के हर एक नागरिक के लिए यह खतरे की घंटी है कि उसकी मौजूदा सरकार उसे इतने हल्के में ले रही है.

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