द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ से 40 फीसदी से अधिक (2,122 मामले) मामले पांच साल से अधिक समय से लंबित हैं.
अधिवक्ता स्नेहा कलिता की सहायता से एमिकस क्यूरी ने अदालत को सूचित किया, ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (जुलाई 2022) की रिपोर्ट के अनुसार, 542 लोकसभा सदस्यों में से 236 (44 प्रतिशत), 226 राज्यसभा सदस्यों में से 71 (31 प्रतिशत) और 3,991 राज्य विधायकों में से 1,723 (43 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.
हंसारिया ने कहा कि ‘वर्तमान के साथ-साथ पूर्व सांसदों और राज्य विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की बड़ी संख्या’ एक गंभीर मुद्दा है.
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राज्य के उच्च न्यायालयों और प्रत्येक जिले के प्रधान सत्र न्यायाधीशों को न्यायिक अधिकारियों के बीच काम आवंटित करना चाहिए, ताकि इन मामलों को विशेष रूप से दिन-प्रतिदिन के आधार पर निपटाया जा सके.
यह भी सिफारिश की गई है कि ‘दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर तथा दर्ज किए जाने वाले कारणों को छोड़कर कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा,’ राज्यों को कम से कम दो विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति करनी चाहिए.
यह सुझाव दिया गया, ‘अगर सरकारी वकील और/या अभियोजन पक्ष त्वरित सुनवाई में सहयोग करने में विफल रहता है, तो ट्रायल कोर्ट आदेश की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भेजेगा, जो आवश्यक उपचारात्मक उपाय करेंगे और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे.’
एमिकस क्यूरी ने कहा कि यदि अभियुक्तों ने मुकदमे में देरी करने की कोशिश की, तो उनकी जमानत रद्द कर दी जानी चाहिए, यह प्रस्ताव करते हुए कि उन मामलों से संबंधित मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो मृत्यु या आजीवन कारावास संबंधी दंडनीय हैं.
उन्होंने कहा कि मौजूदा विधायकों से जुड़े मामलों को पूर्व विधायकों की तुलना में प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई जुलाई में निर्धारित की है.