आंखें तरेर रहे अखिलेश यादव को नजरअंदाज कर रही कांग्रेस, आजमा सकती है प्लान-बी; इस पार्टी से गठबंधन की आस

 


सपा से बढ़ती तल्खियों के बीच कांग्रेस के लिए बसपा भी विकल्प है। मायावती के लगातार इनकार के बाद भी दोनों दलों के नेताओं को गठबंधन की आस है। आंखें तरेर रहे अखिलेश को नजरअंदाज कर रही कांग्रेस प्लान-बी आजमा सकती है।बार-बार 'धोखेबाज' कहकर आंखें तरेर रहे सपा प्रमुख अखिलेश यादव को कांग्रेस हाईकमान गंभीरता से कोई जवाब नहीं दे रहा। प्रत्यक्ष तौर पर भले ही कांग्रेस दबाव में नजर आ रही हो, लेकिन परोक्ष में रणनीति की दूसरी कहानी आकार ले रही है।दरअसल, कांग्रेस के रणनीतिकार दूसरे विकल्प यानी बसपा पर भी लगातार नजर बनाए हुए हैं और उसके साथ गठबंधन की संभावनाओं के द्वार पूरी तरह खोले हुए हैं। बसपा प्रमुख मायावती के इससे इनकार के बाद भी दोनों दलों के नेताओं को इसकी गुंजाइश इसलिए नजर आ रही है, क्योंकि भाजपा से मुकाबले के लिए एक वोटबैंक वाले दल की आवश्यकता कांग्रेस को है तो अस्तित्व के संकट से बसपा भी जूझ रही है।

कांग्रेस को कोस रहे गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय दल

देशभर के अधिकांश विपक्षी दलों ने मिलकर आइएनडीआइए नाम से गठबंधन बनाया है, लेकिन लोकसभा चुनाव-2024 के महासमर में उतरने से पहले एक-दूसरे पर ही इनके हमले तेज होते जा रहे हैं। अपने हितों को लेकर सशंकित क्षेत्रीय दल कांग्रेस को रह-रहकर किसी न किसी मुद्दे पर कोस रहे हैं।

कांग्रेस को धोखेबाज कह रहे अखिलेश यादव

पिछले कुछ दिनों से विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस के सबसे मुखर आलोचक के रूप में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सक्रिय हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस द्वारा सपा को सीटें न दिए जाने से नाराज अखिलेश बार-बार उसे धोखेबाज की संज्ञा दे रहे हैं।

कांग्रेस आजमा सकती है प्लान-बी

शुरुआत में तो उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने पलटवार कर तीखे जवाब भी दिए, लेकिन अब वह संयत नजर आ रहे हैं। यहीं से कांग्रेस के प्लान-बी की नई सुगबुगाहट शुरू हो गई है। कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व आइएनडीआइए गठबंधन टूटने का ठीकरा अपने सिर पर नहीं फुड़वाना चाहता, इसलिए सपा से विवाद को तूल नहीं दे रहा।

कांग्रेस को बसपा से गठबंधन की आस 

पहले तो प्रतीक्षा है कि सबकुछ सही हो जाए, अन्यथा कांग्रेस के पास विकल्प है कि वह उस बसपा को नए सिरे से गठबंधन का न्योता भेजे, जो अभी आइएनडीआइए से बाहर है। कांग्रेस मानती है कि भाजपा द्वारा भरपूर सेंध लगाए जाने के बावजूद बसपा के पास अभी भी पर्याप्त दलित वोटबैंक है। वह मुस्लिमों की राजनीति भी करती है। दलित वोट की चाहत और मुस्लिम वोटों का बिखराव रोकने के लिए ही 2019 में सपा ने उससे गठबंधन कर उसे अपने से एक अधिक सीट देकर समझौता किया था।

कांग्रेस के सामने अखिलेश यादव ने रखी शर्त

पिछले लोकसभा चुनाव में 37 पर सपा, 38 पर बसपा लड़ी। तीन सीटें रालोद के लिए छोड़ीं और कांग्रेस की सोनिया गांधी व राहुल गांधी के विरुद्ध भी प्रत्याशी नहीं उतारा था। अब अखिलेश यादव ने कह दिया है कि वह गठबंधन में रहेंगे तो 65 सीटों पर लड़ेंगे। इस तरह कांग्रेस को बहुत अधिक बलिदान के लिए तैयार रहने की शर्त लगा दी है।

कांग्रेस के लिए बसपा है बेहतर विकल्प

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि हाईकमान इतनी सीटों पर समझौता नहीं कर सकता। तब बसपा उसके लिए बेहतर विकल्प है। कारण यह कि उसके पास दलित वोट है, मुस्लिम को उससे परहेज नहीं और कांग्रेस-बसपा के साथ आने पर सवर्णों को भी विकल्प मिल सकता है। दलित और सवर्ण जो सामान्यत: सपा से किनारा करता है, वह कांग्रेस का पुराना वोटबैंक रहा भी है।

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बसपा सांसदों को कांग्रेस से गठबंधन की आस

बसपा, कांग्रेस और रालोद गठबंधन से जाटों की सियासत भी सध जाएगी। बसपा से संपर्क साधने के लिए कांग्रेस की ओर से हाल ही में प्रयास किए जा चुके हैं। वहीं, बसपा खेमे के कुछ सांसदों को आस है कि रालोद को साथ लेकर अंतत: बसपा और कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है।

बसपा के लिए भी आसान नहीं है अकेले चुनाव लड़ना

मायावती द्वारा सिरे से यह खारिज किए जाने के प्रश्न पर कहते हैं कि अकेले चुनाव लड़ना बसपा के लिए इतना आसान नहीं रह गया है। अस्तित्व बचाने के लिए यदि बसपा लखनऊ गेस्ट हाउस कांड की दोषी सपा से समझौता कर सकती हैं तो कांग्रेस के साथ जाने में तो ऐसी कोई बाधा भी नहीं है।

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