भगवान में विश्वास ही सफलतम जीवन का मंत्र है-रमानाथ दास,(इस्कॉन नोएडा )

 




हिं.दै.आज का मतदाता नोएडा उत्तर प्रदेश ईश्वरी रचना की करोड़ों बिंदुओं में मनुष्य की मान्यता सर्वोच्च है और जिसकी भक्ति पाने के लिए ईश्वर भी उत्सुक  रहते हैं


सृष्टि में मानव अपनी खुशियों को हासिल करने के लिए अनेक तौर तरीके अपनाता है लेकिन वह जीवन का सर्वोच्च मंत्र ईश्वर में विश्वास से पृथक रहता है इसलिए नितांत आवश्यक हो जाता है कि संपूर्ण मानव जाति ईश्वरी सत्ता पर सदैव पूर्ण विश्वास रखें यदि वह भगवान का विश्वास पात्र बन जाता है तो सदैव वह  कष्ट मुक्त होकर प्रगति मार्ग पर चलता जाएगा यह कथन एक संक्षिप्त वात‌ऻ के अंतर्गत रमानाथ दास ने कहा । आपने बहुत ही प्रमाणिकता के साथ अपने इस बात को रखा कि यदि व्यक्ति केवल हरि नाम से जुड़ जाए और सदैव पूज्य प्रसाद को ग्रहण करें तो उसकी शारीरिक ,मानसिक गतिविधियां या कार्यशैली कभी भी भटकाव वाद के रूप में नहीं जाएगी क्योंकि


सर्वदा सत्य यह है कि यदि मानव अपनी जीभ पर नियंत्रण रखकर शब्द संबोधित करता है तो वह कभी भी स्वयं के साथ-साथ दूसरों को भी नुकसान नहीं पहुंचा सकता यह बात कई पौराणिक कथाओं के साथ-साथ वर्तमान कलयुगी घटना चक्र में मिल जाएगी  जो अपने शब्दों के गलत प्रयोग करने के कारण अपराध का भागीदार होकर कष्ट भोग रहे हैं ।


अपने बहुत ही सत्यता पूर्वक कहते हुए इस बात का का विश्वास दिलाया कि यदि इंसान हरी नाम का प्रसाद ग्रहण कर लेता है तो वह कई कष्टों से मुक्त हो जाता है । रमानाथदास ने एक अन्य महत्वपूर्ण सवाल के जवाब में कहा कि ईश्वरीय सत्ता  कण कण में है लेकिन हम उसकी सत्ता का और उसका दर्शन नहीं कर पाते यह बहुत आवश्यक है कि हम अपने आंखों के पर्दों को हटाए और उस पर प्रेम का अंजन लगाएं जब प्रेम अंजन लग  जाएगा तब हमें ईश्वरीय दर्शन भी हो जाएगा। वर्तमान कलयुग में अपने को सर्वोच्च  पथ पर अग्रसारित करने के लिए यदि व्यक्ति प्रति माह एकादशी का व्रत रखता है तो यह निश्चित है की उसका सौभाग्य और भाग्य दोनों का रास्ता खुल जाएगा।


इसी कड़ी में अपने एकादशी व्रत से संबंधित यह तथ्य सामने रखा की एकादशी के दिन शास्त्रों में वर्णित है कि एकादशी वाले दिन जितने भी पाप कष्ट योग्य होते हैं सारे पाप उस दिन अन्न में समा जाते हैं इसलिए   इस व्रत  को अन्न प्रसाद ग्रहण से दूर रखा गया है। आपने कहा की एकादशी व्रत सदैव भगवान के प्रसन्नता हेतु रखा जाता है इसलिए इस व्रत का कभी भी उद्यापन नहीं करना चाहिए।


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