केंद्र ने अदालत से कहा, रेल लाइन के साथ बसी झुग्गियों पर फिलहाल कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी

 

बीते 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में दिल्ली में लगभग 140 किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक के आसपास में फैली क़रीब 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को तीन महीने के भीतर हटाने का आदेश दिया था. 

दिल्ली के सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन के पास बसी एक बस्ती. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली के सराय रोहिल्ला रेलवे स्टेशन के पास बसी एक बस्ती. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि दिल्ली में रेलवे लाइन के साथ बसी करीब 48,000 झुग्गियों को हटाने के मुद्दे पर विचार-विमर्श चल रहा है और फिलहाल उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने 14 सितंबर को वक्तव्य दिया था कि प्राधिकारी इस मुद्दे पर निर्णय लेने जा रहे हैं, लेकिन इन झुग्गी बस्तियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी.

मेहता ने कहा, ‘इस विषय पर मंत्रणा जारी है. हम कोई दंडात्मक कदम नहीं उठा रहे हैं.’

पीठ ने सॉलिसीटर जनरल के इस कथन का संज्ञान लेते हुए कहा कि वह चार सप्ताह बाद इस मामले पर आगे सुनवाई करेगी.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘सॉलिसीटर जनरल कहते हैं कि सरकार इस मुद्दे पर विचार कर रही है. चार सप्ताह के लिए इसे स्थगित किया जाए.’ उसके बाद अदालत ने इसे चार सप्ताह के लिए टाल दिया.

बता दें कि बीते 31 अगस्त को जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ ने अपने एक आदेश में दिल्ली में लगभग 140 किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक के आसपास में फैलीं करीब 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया था.

कोर्ट ने कहा था कि ये कार्य तीन महीने के भीतर पूरा कर लिया जाना चाहिए. इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी निर्देश दिया था कि झुग्गियां हटाने को लेकर कोई भी कोर्ट स्टे नहीं लगाएगा. साथ ही इस आदेश पर अमल में किसी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप न हो.

दिल्ली में प्रदूषण से उत्पन्न स्थिति से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान राजधानी में अनधिकृत कब्जों का मामला न्यायालय के ध्यान में लाया गया था. इसी सिलसिले में रेलवे लाइन के साथ बसी इन झुग्गी-बस्तियों का मामला भी उठा था, जिस पर न्यायालय ने 31 अगस्त को विस्तृत फैसला सुनाया गया था.

केंद्र सरकार ने 14 सितंबर को शीर्ष अदालत को यह आश्वासन दिया था कि 140 किमी लंबी रेलवे लाइन के साथ बसी इन झुग्गी-बस्तियों के मामले में अंतिम निर्णय लिए जाने तक इन झुग्गियों को नहीं हटाया जाएगा.

केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय को सूचित किया था कि रेलवे, दिल्ली सरकार और शहरी विकास मंत्रालय से परामर्श के बाद ही इस मामले में अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

इस बीच, कई नागरिक समूहों और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने एक आवेदन दायर कर दिल्ली में रेलवे लाइन के किनारे बनी झुग्गियों को हटाने से पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था कराने का अनुरोध किया है.

आवेदन में रेल मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली शहरी आवास सुधार बोर्ड को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि इस मामले में दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास नीति 2015 और झुग्गियों को हटाने संबंधी प्रोटोकाल का अक्षरश: पालन किया जाए.

आवेदन में कोविड-19 महामारी का हवाला देते हुए कहा गया था कि इस परिस्थिति में पहले पुनर्वास की व्यवस्था के बगैर ही इन झुग्गियों को गिराना बहुत ही जोखिम भरा होगा, क्योंकि इनमें रहने वाली ढाई लाख से ज्यादा की आबादी को अपने आवास और आजीविका की तलाश में दूसरी जगह भटकना होगा.

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