फाइल दबाकर बैठने वाले अधिकारियों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती: सुप्रीम कोर्ट

एक मामले में 462 दिन की देरी से दायर याचिका ख़ारिज कर अधिकारियों को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका मक़सद सिर्फ़ मामले से यह कहकर छुटकारा पाना है कि अब इसमें कुछ नहीं किया जा सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपील ख़ारिज कर दी है.

(फोटो: पीटीआई)

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हिंदी दैनिक आज का मतदाता नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह विडंबना है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा अपील दायर करने में देरी को लेकर बार-बार नाराजगी जताने के बावजूद फाइल दबाकर बैठने वाले अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं होती.

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के पिछले साल फरवरी के आदेश के खिलाफ उप-वन संरक्षक की अपील देरी से दायर करने के आधार पर खारिज करते हुए न्यायिक समय बर्बाद करने कि लिए याचिकाकर्ता पर 15,000 रुपये के जुर्माना लगाया.

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता में पीठ ने कहा, ‘विडंबना यह है कि बार-बार की चेतावनी के बावजूद फाइल दबाकर बैठने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.’

पीठ ने कहा, ‘मौजूदा मामले को और बढ़ा दिया गया है और मौजूदा याचिका 462 दिन देरी के साथ दायर की गई है. इस बार भी वकील बदले जाने का बहाना बनाया गया है. हमने सिर्फ औपचारिकता के लिए अदालत आने के  राज्य सरकारों के बार-बार के इस तरह के प्रयासों की निंदा की है.’

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सरकारी अधिकारी अदालत में देरी से अपील दायर करते हैं, जैसे निर्धारित समयसीमा उनके लिए नहीं है.

पीठ ने कहा, ‘विशेष अवकाश याचिका 462 दिनों की देरी से दायर की गई. यह इस न्यायालय के समक्ष एक और ऐसा मामला है जिसे हमने ‘प्रमाणित मामलों’ की श्रेणी में वर्गीकृत किया है और जो सिर्फ एक औपचारिकता पूरी करने और मुकदमे का बचाव करने में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों की को बचाने के लिए दायर किया गया है.’

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अक्टूबर में पारित किए गए अपने फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि उसने ‘प्रमाणित मामलों’ को परिभाषित किया है, जिसका मकसद उससे सिर्फ यह कहकर छुटकारा पाना है कि अब इसमें कुछ नहीं किया जा सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी है.

याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि यह बेशकीमती जमीन का मामला है, तो इस पर पीठ ने कहा, ‘हमारी राय में अगर यह ऐसा था, तो इसके लिए जिम्मेदार उन अधिकारियों को जुर्माना भरना होगा, जिन्होंने इस याचिका का बचाव किया.’

पीठ ने कहा, ‘हम इस याचिका को विलंब के आधार पर खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर न्यायिक समय बर्बाद करने के लिये 15,000 रुपये का जुर्माना भी लगा रहे हैं.’

पीठ ने कहा, ‘इस तथ्य के साथ कि हमारे सामने एक युवा वकील है, तो हमने अकेले उस कारक को ध्यान में रखते हुए काफी रियायत दी है.’

पीठ ने जुर्माने की राशि उन अधिकारियों से वसूल करने का निर्देश दिया है, जो सुप्रीम कोर्ट में इतनी देर से अपील करने के लिए जिम्मेदार हैं.

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