प्रदर्शनकारी किसानों को खालिस्तानी और राष्ट्र-विरोधी के तौर पर पेश न करे मीडिया: एडिटर्स गिल्ड

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा कि बिना साक्ष्य के किसानों को खालिस्तानी और देशद्रोही बताने की कोशिश ज़िम्मेदार पत्रकारिता नहीं है. इससे मीडिया की विश्वसनीयता ख़तरे में आती है. मीडिया को ऐसे किसी विमर्श में संलिप्त नहीं होना चाहिए जो प्रदर्शनकारियों को उनकी वेशभूषा के आधार पर अपमानित करता हो और उन्हें हीन मानता हो.

(फोटो: पीटीआई)

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन के समाचार कवरेज को लेकर शुक्रवार को चिंता प्रकट करते हुए कहा कि मीडिया का कुछ हिस्सा बगैर किसी साक्ष्य के प्रदर्शनकारी किसानों को ‘खालिस्तानी’ और ‘राष्ट्र-विरोधी’ बताकर आंदोलन को अवैध ठहरा रहा है.एडिटर्स गिल्ड ने एक बयान में कहा कि यह जिम्मेदार और नैतिकतापूर्ण पत्रकारिता के सिद्धांतों के खिलाफ है.बयान में कहा गया है, ‘द एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया राष्ट्रीय राजधानी में समाचारों के उन कवरेज के बारे में चिंतित है, जिनमें मीडिया के कुछ हिस्से में उन्हें खालिस्तानी और राष्ट्रविरोधी बताया जा रहा है तथा बगैर किसी साक्ष्य के प्रदर्शन को अवैध ठहराने के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे मीडिया की विश्वसनीयता खतरे में आती है.’

एडिटर्स गिल्ड ने मीडिया संगठनों को किसान आंदोलन का निष्पक्ष और संतुलित कवरेज करने की सलाह दी है.एडिटर्स गिल्ड की प्रमुख सीमा मुस्तफा द्वारा जारी बयान में कहा गया है, ‘एडिटर्स गिल्ड मीडिया संस्थाओं को किसानों के प्रदर्शन की रिपोर्टिंग में निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और संतुलन प्रदर्शित करने की सलाह देता है तथा इसमें अपने लिए संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करने वालों के खिलाफ कोई पक्षपात नहीं करे. मीडिया को ऐसे किसी विमर्श में संलिप्त नहीं होना चाहिए जो प्रदर्शनकारियों को उनकी वेशभूषा के आधार पर अपमानित करता हो और उन्हें हीन मानता हो.’बता दें कि नए कृषि कानून के खिलाफ पिछले दस दिनों (26 नवंबर) से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि वे निर्णायक लड़ाई के लिए दिल्ली आए हैं और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा. किसानों ने आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है.

मालूम हो कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं. 

टिप्पणियाँ
Popular posts
परमपिता परमेश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दें, उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें व समस्त परिजनों व समाज को इस दुख की घड़ी में उनका वियोग सहने की शक्ति प्रदान करें-व्यापारी सुरक्षा फोरम
चित्र
World Food Day 2024: कब भूखमरी एवं भूखें लोगों की दुनिया से निजात मिलेगी?
चित्र
योगी सरकार का बड़ा कदम, एआई सीसीटीवी से अभेद्य होगी महाकुंभ की सुरक्षा व्यवस्था
चित्र
प्रथम पहल फाउंडेशन शीघ्र ही मल्टी स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल बनाएगा
चित्र
दिवाली पर बिल्ली का दिखना होता है शुभ, जानिए ये जानवर दिखने पर होता है क्या