इससे पहले किसानों और सरकार के बीच चार जनवरी को हुई सातवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही थी. किसान जहां तीनों कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हैं, तो दूसरी ओर सरकार क़ानूनों के दिक्कत वाले प्रावधानों और अन्य विकल्पों पर चर्चा करने पर अडिग नज़र आ रही है.
नई दिल्ली: सरकार ओर किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच तीन कृषि कानूनों को लेकर शुक्रवार को आठवें दौर की वार्ता बेनतीजा संपन्न हुई. अगली बैठक 15 जनवरी को हो सकती है.
तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर अड़े किसान नेताओं ने शुक्रवार को सरकार से दो टूक कहा कि उनकी ‘घर वापसी’ तभी होगी जब वह इन कानूनों को वापस लेगी.
दूसरी ओर सरकार भी इन कानूनों को वापस न लेने की अपनी जिद पर पड़ी नजर आ रही है. कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग खारिज करते हुए उसने इसके विवादास्पद बिंदुओं तक चर्चा सीमित रखने पर जोर दिया.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘कानूनों पर बातचीत हुई, लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया जा सका. सरकार ने किसान यूनियनों से अनुरोध किया है कि अगर वे कानून वापस लिए जाने के अलावा कोई विकल्प देते हैं तो हम उस पर विचार करेंगे. लेकिन कोई भी विकल्प नहीं दिया गया, इसलिए बैठक समाप्त कर दी गई. 15 जनवरी को अगली बैठक करने का निर्णय किया गया है.’
सूत्रों ने बताया कि बैठक में वार्ता ज्यादा नहीं हो सकी और अगली तारीख उच्चतम न्यायालय में इस मामले में 11 जनवरी को होने वाली सुनवाई को ध्यान में रखते हुए तय की गई है.
सरकारी सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय किसान आंदोलन से जुड़े अन्य मुद्दों के अलावा तीनों कानूनों की वैधता पर भी विचार कर सकता है.
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा, ‘कानूनों के निरस्त होने तक किसान कमजोर नहीं पड़ेंगे. हम 15 को फिर से आएंगे. हम कहीं नहीं जाने वाले. सरकार संशोंधनों को लेकर बात करना चाहती है. हम बिंदुवार बातचीत नहीं करना चाहते हैं. हम बस नए कृषि कानूनों को रद्द कराना चाहते हैं.’
सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के 41 सदस्यीय प्रतिनिधियों के साथ आठवें दौर की वार्ता में सत्ता पक्ष की ओर से दावा किया गया कि विभिन्न राज्यों के किसानों के एक बड़े समूह ने इन कानूनों का स्वागत किया है. सरकार ने किसान नेताओं से कहा कि उन्हें पूरे देश का हित समझना चाहिए.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य एवं खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री एवं पंजाब से सांसद सोम प्रकाश करीब 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विज्ञान भवन में वार्ता कर रहे थे.
उधर, मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए हजारों किसान कड़ाके की ठंड के बावजूद बीते एक महीने से अधिक समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक बैठक के दौरान तोमर ने किसान संगठनों से कानूनों पर वार्ता करने की अपील की, जबकि संगठन के नेता कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े रहे.
उन्होंने बताया कि केंद्रीय कृषि मंत्री ने किसान नेताओं से पूरे देश के किसानों का हितों की रक्षा करने पर जोर दिया.
एक किसान नेता ने बैठक में कहा, ‘हमारी ‘घर वापसी’ तभी होगी जब इन ‘कानूनों की वापसी’ होगी.’
एक अन्य किसान नेता ने बैठक में कहा, ‘आदर्श तरीका तो यही है कि केंद्र को कृषि के विषय पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि उच्चतम न्यायालय के विभिन्न आदेशों में कृषि को राज्य का विषय घोषित किया गया है. ऐसा लग रहा है कि आप (सरकार) मामले का समाधान नहीं चाहते हैं, क्योंकि वार्ता कई दिनों से चल रही है. ऐसी सूरत में आप हमें स्पष्ट बता दीजिए. हम चले जाएंगे. क्यों हम एक दूसरे का समय बर्बाद करें.’
ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला ने कहा, ‘काफी तीखी बातचीत रही. हमने कानूनों को निरस्त करने के अलावा हम कुछ नहीं चाहते हैं. हम किसी अदालत नहीं जाएंगे. या तो यह होगा (कानूनों निरस्त) या हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. 26 जनवरी को हमारी (ट्रैक्टर) परेड योजना के अनुसार होगी.’
उन्होंने कहा कि किसान अंतिम सांस तक लड़ने को तैयार हैं. किसान संगठन 11 जनवरी को करेंगे आगे की कार्रवाई पर निर्णय लेंगे.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की कविता कुरुगंती ने बताया कि सरकार ने किसानों से कहा है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं ले सकती और ना लेगी. कविता भी बैठक में शामिल थीं.
लगभग एक घंटे की वार्ता के बाद किसान नेताओं ने बैठक के दौरान मौन धारण करना तय किया और इसके साथ ही उन्होंने नारे लिखे बैनर लहराना आरंभ कर दिया. इन बैनरों में लिखा था ‘जीतेंगे या मरेंगे’. लिहाजा, तीनों मंत्री आपसी चर्चा के लिए हॉल से बाहर निकल आए.
एक सूत्र ने बताया कि तीनों मंत्रियों ने दोपहर भोज का अवकाश भी नहीं लिया और एक कमरे में बैठक करते रहे.
आज की बैठक शुरू होने से पहले तोमर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और दोनों के बीच लगभग एक घंटे वार्ता चली.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘जिनका मानना है कि कानून वापस लिए जाने चाहिए वे प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं और तमान अन्य लोग भी हैं जिन्होंने इन कानूनों का समर्थन किया है. सरकार लगातार किसान यूनियनों से बात कर रही है, जो कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. हमने अनुरोध के बाद उन लोगों से भी बात करने को कहा है, जो इसके समर्थन में हैं.’
तोमर ने कहा, ‘लखा सिंह (नानकसर गुरुद्वारा कालेरण के प्रमुख) व्यथित हैं कि किसान ठंड में प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने किसानों का नजरिया हमसे साझा किया है और मैंने उनसे सरकार का पक्ष रखा है. मैंने उनसे किसान यूनियनों के नेताओं से बातचीत करने का अनुरोध किया है. हम उनसे नहीं मिले, बल्कि उन्होंने किसानों के प्रति अपनी पीड़ा को लेकर हमसे बाद की है.’
इससे पहले चार जनवरी को हुई वार्ता बेनतीजा रही थी, क्योंकि किसान संगठन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की अपनी मांग पर डटे रहे, वहीं सरकार ‘समस्या’ वाले प्रावधानों या गतिरोध दूर करने के लिए अन्य विकल्पों पर ही बात करना चाहती है.
किसान संगठनों और केंद्र के बीच 30 दिसंबर 2020 को छठे दौर की वार्ता में दो मांगों पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर करने और बिजली पर सब्सिडी जारी रखने को लेकर सहमति बनी थी.
इससे पहले केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने उम्मीद जताई थी कि शुक्रवार की बैठक में कोई समाधान निकलेगा.
चौधरी ने बातचीत में कहा था, ‘मुझे उम्मीद है कि शुक्रवार को होने वाली बैठक में किसी समाधान तक पहुंचा जा सकेगा. प्रदर्शन कर रही किसान यूनियनों ने पहली बैठक में उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की होती तो अभी तक तो हम गतिरोध को समाप्त कर चुके होते.’
उन्होंने कहा कि पहली बैठक में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग नहीं की गई थी.
बैठक से पहले बीते गुरुवार नरेंद्र सिंह तोमर ने भी स्पष्ट किया था कि कृषि क़ानूनों को वापस लेने के अलावा किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने को सरकार तैयार है.
बहरहाल शुक्रवार को बैठक से पहले कविता कुरूंगती ने कहा, ‘अगर आज की बैठक में समाधान नहीं निकला तो हम 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकालने की अपनी योजना पर आगे बढ़ेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘हमारी मुख्य मांग कानूनों को निरस्त करना है. हम किसी भी संशोधनों को स्वीकार नहीं करेंगे. सरकार इसे अहम का मुद्दा बना रही है और कानून वापस नहीं ले रही है. लेकिन, यह सभी किसानों के लिए जीवन और मरण का प्रश्न है. शुरुआत से ही हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है.’
किसान यूनियनों और सरकार के बीच चार जनवरी को हुई सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा रही थी. एक ओर किसान यूनियन तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़ी हैं, तो दूसरी ओर सरकार कानूनों के दिक्कत वाले प्रावधानों और अन्य विकल्पों पर चर्चा करना चाहती है.
उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को किसान संगठनों ने अपनी मांगों के मद्देनजर सरकार पर दबाव बनाने के लिए ट्रैक्टर रैली निकाली थी.