भारत के वायु प्रदूषण प्रबंधन लक्ष्यों को हासिल करने की राह में खड़ी बाधाएं और समाधान

भारत के वायु प्रदूषण प्रबंधन लक्ष्यों पर क्लाइमेट ट्रेंड्स का विचार-विमर्श

हर साल की तरह इस वर्ष भी सर्दियों के जोर पकड़ने के साथ ही देश के अनेक शहरों में प्रदूषण का स्तर (Pollution levels in cities) फिर लगातार खराब होता जा रहा है। ऐसे में प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण (Control of sources of pollution) करने के लिए उपाय तलाशना और प्रदूषण संबंधी डाटा के विश्लेषण से मिल रहे नतीजों को वास्तविक अर्थों में समझना बेहद महत्वपूर्ण है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स ने आयोजित किया वेबिनार

क्लाइमेट ट्रेंड्स ने भारत के वायु प्रदूषण प्रबंधन संबंधी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में हुई प्रगति, सामने आने वाली बाधाओं और उनके समाधानों पर विचार-विमर्श के लिए बुधवार को एक वेबिनार आयोजित किया।

इस दौरान नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (National Clean Air Program) के दायरे में लिए गए शहरों में कंटीन्यूअस एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स की निगरानी (Monitoring of Continuous Ambient Air Quality Standards) के लिए बनाए गए एक नए डैशबोर्ड पर भी विस्तार से चर्चा की गई। इस डैशबोर्ड को रेस्पिरे लिविंग और कार्बन कॉपी की सहभागिता से लांच किया गया है।

इस वेबिनार में आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष डॉक्‍टर सच्चिदानंद त्रिपाठी, रेस्पाइरर लिविंग साइंस के सीईओ रोनक सुतारिया, काउंसिल फॉर एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर के रिसर्च फेलो कार्तिक गणेशन, इंडस्ट्रियल पलूशन यूनिट सीएसई के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के प्रोफेसर डॉक्‍टर डीजे क्रिस्टोफर और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के फेलो डॉक्टर संतोष हरीश ने हिस्सा लिया।

वेबीनार का संचालन क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने किया | The webinar was conducted by Aarti Khosla, Director of Climate Trends.

डॉक्‍टर सच्चिदानंद त्रिपाठी ने कहा कि सरकार ने प्रदूषण कम करने को लेकर जो भी प्रतिबद्धताएं व्यक्‍त की थीं, उन पर प्रगति हो रही है। पांच साल के इस कार्यक्रम में हम अपने सही रास्‍ते पर हैं। इस वक्त चीजों को और जवाबदेही पूर्ण बनाया जा रहा है। आप जानते हैं कि वित्‍त आयोग के दिशानिर्देशों पर राज्य सरकारों तथा नगरीय निकायों को प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रमों के लिये वित्‍तीय अनुदान दिया गया है। वित्तीय आयोग की सिफारिशों के मुताबिक इस अनुदान को सरकारों और निकायों के कार्य प्रदर्शन से जोड़ा जाएगा। हम बहुत विस्तृत कार्य योजना बना रहे हैं। प्रदर्शन के मूल्‍यांकन में कई सुनिश्चित प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है, जिसमें ‘आउटपुट’ और ‘आउटकम’ पर जोर दिया गया है।

उन्‍होंने बताया कि प्रक्रियाओं का मतलब इस बात से है कि अनुदान हासिल करने वाले नगरीय निकाय वे कौन से बदलाव ला रहे हैं जिनसे लक्ष्य हासिल किया जा सके। आउटपुट का मतलब इस बात से है कि क्‍या वे निकाय प्रदूषण निगरानी नेटवर्क को बेहतर बनाने पर काम कर रहे हैं और आउटकम का मतलब यह है कि क्‍या वे आने वाले वर्षों में पीएम10 को कम करके वायु की गुणवत्ता (Air quality) सुधारने जा रहे हैं। यह तीनों ही चीज है इस कार्य योजना का हिस्सा होंगी, जहां मात्रात्मक नंबर दिए जाएंगे साथ ही वरीयता भी दी जाएगी और कुल वेटेड परफॉर्मेंस के हिसाब से अनुदान जारी किया जाएगा। यह एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है।

निकायों के प्रदर्शन को मापने के लिये तकनीकी संस्‍थानों, विश्‍वविद्यालयों और नेशनल क्‍लीन एयर प्रोग्राम में योगदान देने की क्षमता रखने वाली प्रयोगशालाओं की मदद ली जा रही है। खासकर नॉन अटेनमेंट शहरों में थर्ड पार्टी एसेसमेंट किया जा रहा है।

डॉक्‍टर त्रिपाठी ने नेशनल नॉलेज नेटवर्क का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक विशेषज्ञ सलाहकार ग्रुप के तौर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ काम करेगा। आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) इसका नेशनल कोऑर्डिनेटर इंस्टिट्यूट होगा। इसके अलावा आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay)आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi), आईआईटी मद्रास (IIT Madras), आईआईटी रुड़की (IIT Roorkee), आईआईटी कानपुर और आईआईटी गुवाहाटी (IIT Guwahati) जैसे नोडल संस्थान इसके समन्वयक संस्थान के तौर पर काम करेंगे। साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central pollution control board) और पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) के मनोनीत अधिकारियों के साथ तीन स्वतंत्र विशेषज्ञ काम करेंगे। इस नेशनल नॉलेज नेटवर्क का काम राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों तथा अन्य हित धारकों की क्षमता का निर्माण करना है। इसके अलावा नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की योजना तथा उसे लागू करने में जानकारी में एकरूपता बरकरार रखना, वैज्ञानिक ज्ञान आधारित दस्तावेजीकरण, डेटा विश्लेषण और फील्ड स्टडी गाइडेंस डॉक्यूमेंट तैयार करना भी इसके कार्यों में शामिल हैं।

Air Pollution Webinar + CAAQMS Dashboard

रेस्पाइरर लिविंग साइंस के सीईओ रोनक सुतारिया ने सरकार नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के दायरे में लिए गए शहरों में कंटीन्यूअस एंबिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स की निगरानी के लिए बनाए गए एक नए डैशबोर्ड के बारे में विस्‍तार से जानकारी देते हुए कहा कि देश के विभिन्‍न शहरों में प्रदूषण के स्‍तरों की जानकारी को आम लोगों तक पहुंचाने में इससे बहुत मदद मिलेगी।

उन्होंने एटमॉस अर्बन साइंसेस डैशबोर्ड का जिक्र करते हुए उसके विभिन्न खंडों की पड़ताल की और विभिन्न राज्यों तथा शहरों में वायु की गुणवत्ता पर चर्चा की।

इंडस्ट्रियल पलूशन यूनिट सीएसई के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने दिल्‍ली और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औद्योगिक वायु प्रदूषण के आकलन पर एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि सरकार प्रदूषण की समस्‍या से निपटने के तमाम प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आधे-अधूरे आंकड़ों और व्‍यापक स्‍तर पर जवाबदेही तय नहीं किये जाने से वे कोशिशें उतनी सफल नहीं हो पा रही हैं।

उन्‍होंने कहा कि खासकर उद्योग जगत के प्रदूषण सम्‍बन्‍धी आंकड़े अपर्याप्त, अपूर्ण और खराब गुणवत्ता वाले हैं। उद्योगों के मालिक यह नहीं बताते हैं कि उनके यहां कितने घंटे काम हुआ, कितनी मात्रा में ईंधन का इस्तेमाल किया गया, कचरा कितना निकला और उनके प्रबंधन की क्या योजना है। उत्तर प्रदेश में 18000 में से 12000 ईंट-भट्टे अवैध रूप से चल रहे हैं। इनकी जवाबदेही कौन तय करेगा। अगर आप इसकी अनदेखी करते हैं तो पूरा का पूरा उद्देश्य ही विफल हो जाता है।

यादव ने कहा कि प्राकृतिक गैस को अभी भी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। गैस लगभग कोयले के मुकाबले लगभग ढाई गुना महंगी हो गई है, मगर कुछेक उदाहरणों को छोड़ दें तो गैस अपनाने वाले उद्योगों को कोई भी प्रोत्साहन नहीं दिया गया है। देश के अनेक शहरों में अब भी पर्याप्त मात्रा में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन नहीं हैं। वर्ष 2009 में देश में 2000 एयर मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने की जरूरत थी लेकिन हम सिर्फ 1300 को ही लगा सके। देश में बड़ी संख्या में उद्योगों के उत्सर्जन पर नजर रखने के लिए निगरानी केन्‍द्रों पर स्‍टाफ नहीं है।

उन्‍होंने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के इस महत्‍वपूर्ण काम में लघु उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण पर कम ध्यान दिया जा रहा है। बहुत बड़ी संख्या में ऐसी इकाइयां हैं जो अवैध रूप से चल रही हैं। छोटे बॉयलर और भट्टियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन पर निगरानी रखना लगभग नामुमकिन है। खराब ईंधन जैसे कि कोयला सभी ईट भट्टों में इस्तेमाल किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर उद्योगों में भी इसी कोयले का प्रयोग हो रहा है। इनमें से ज्यादातर स्रोत हवा में उड़ने वाले प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन का बहुत बड़ा स्रोत हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लघु उद्योगों द्वारा फैलाये जाने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए कोई भी विशेष योजना नहीं है।

यादव ने कहा कि देश के पर्यावरण सम्‍बन्‍धी कानूनों का उल्‍लंघन करने पर दिये जाने वाले दण्‍ड का स्‍वरूप ऐसा है कि अदालतों में ऐसे मामले बहुत लंबे समय तक चलते हैं। पर्यावरण को भारी नुकसान होने के बावजूद राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रदूषण संबंधी नियमों के उल्लंघन के आरोप में उद्योगों पर लगाया जाने वाला जुर्माना बहुत कम है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालयों में लोगों की संख्या बहुत कम है। एक या दो टेक्निकल अफसर 500 से ज्यादा उद्योगों पर नजर रखते हैं। यह काम लगभग नामुमकिन है।

यादव ने सुझाव देते हुए कहा कि सीटीओ, सीईटी और इसी के ढांचे में आमूलचूल बदलाव लाने की जरूरत है। ऑनलाइन कंटीन्यूअस एमिशन मॉनिटरिंग सिस्टम (ओसीईएमएस) की डाटा क्वालिटी में सुधार किया जाए और उनका विस्तृत विश्लेषण हो। सभी राज्यों से प्राप्त प्रदूषण संबंधी डेटा को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा उद्योगों की वेबसाइट पर किया जाना सार्वजनिक किया जाना चाहिए। सभी प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में गैस की उपलब्धता पर तेजी से काम किया जाना चाहिए। गैस को जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए और अवैध उद्योगों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए विस्तृत कार्य योजना बनाई जानी चाहिए।

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की क्षमता का आकलन करके उन्हें प्रभावी नियामक के तौर पर तैयार किया जाना चाहिए। छोटे बॉयलर को सामान्य बॉयलर से बदला जाना चाहिए ताकि उनसे होने वाले प्रदूषण की निगरानी की जा सके। इसके अलावा उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण की सख्‍ती से निगरानी की जानी चाहिए और कानून तोड़ने वालों पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया जाना चाहिए।

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के प्रोफेसर डॉक्‍टर डीजे क्रिस्टोफर ने भी इस मौके पर एक अध्ययन साझा करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य के बीच संबंध अब जगजाहिर हो चुका है। दुनिया भर में 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण और शारीरिक अनुभूति की क्षमता के बीच एक संबंध है। पीएम2.5 की वजह से खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गों में महसूस करने की क्षमता घट रही है।

उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण के प्रभावों के लिहाज से बच्चे कहीं ज्यादा खतरे में हैं।

उन्होंने कहा कि बच्चों के फेफड़े हवा में मौजूद रसायन और प्रदूषणकारी तत्वों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। बच्चे वयस्क लोगों के मुकाबले शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय होते हैं और वे तुलनात्मक रूप से सांस के रूप में ज्यादा हवा अपने फेफड़ों में लेते हैं परिणाम स्वरूप उनके शरीर में ज्यादा मात्रा में प्रदूषणकारी तत्व पहुंच जाते हैं। बच्चों का श्‍वसन क्षेत्र वयस्कों के मुकाबले छोटा होता है। इसकी वजह से उनके फेफड़ों में प्रदूषणकारी तत्व ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। इन सब की वजह से बच्चों की श्वसन प्रणाली में संक्रमण का खतरा ज्यादा रहता है। इसके अलावा उनमें दमा तथा फेफड़ों का ठीक से विकास न होने की शिकायतें भी रहती हैं।

डॉक्टर क्रिस्टोफर ने बताया कि वायु प्रदूषण के खराब प्रभाव दरअसल बच्चे के पैदा होने से पहले ही उस पर पड़ने लगते हैं। शोध के मुताबिक गर्भनाल के रक्त में 287 प्रदूषणकारी तत्व रसायन और अन्य नुकसानदेह चीजें पाई गई हैं। इसके अलावा बुजुर्ग महिलाओं में मस्तिष्क का आकार घटने के पीछे वायु प्रदूषण को भी एक कारण के तौर पर माना गया है।

प्रदूषण आखिर कहां से आ रहा है

काउंसिल फॉर एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर के रिसर्च फेलो कार्तिक गणेशन ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण का काम जिन नगरीय शासी निकायों पर डाला गया है, उनकी क्षमता को देखें तो पायेंगे कि हमारे पास कामयाबी के मौके बेहद कम हैं क्योंकि जवाबदेही तय करने के लिए पर्याप्‍त डेटा नहीं है। जब हम गहराई में जाएंगे तो सार्वजनिक मंच पर ऐसा कोई भी आंकड़ा नहीं है जिससे यह पता चले कि प्रदूषण फैलाने वाला मूल कारण क्या है। हमें मॉनिटरिंग की सख्त जरूरत है लेकिन लोगों के लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर प्रदूषण कहां से आ रहा है। हमारे आस-पास ऐसा क्‍या हो रहा है।

कितना प्रदूषण फैला रहे हैं पावर प्लांट

उन्‍होंने कहा कि पावर प्लांट कितना प्रदूषण फैला रहे हैं इसकी वास्‍तविक जानकारी ही नहीं मिल पा रही है। पावर प्लांट प्रदूषण को बहुत दूर तक फैला रहे हैं। हम इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इसी वजह से हम अक्सर गलत नतीजे पर पहुंच रहे हैं। यह हमारी प्रतिबद्धताओं को चोट पहुंचाता है। हमें प्रदूषण के परिवहन के विज्ञान को समझना पड़ेगा। हमारे पास उच्‍च गुणवत्‍ता वाले कई शोध मौजूद हैं मगर फिर भी चीजों को और बेहतर ढंग से समझना होगा। मैं समझता हूं कि प्रदूषण के छोटे-छोटे स्रोतों की अनदेखी करना बहुत नुकसानदेह होगा क्योंकि यही छोटे-छोटे मिलकर बड़ा अंतर पैदा करते हैं।

वार्षिक बजट में प्रदूषण | Pollution in annual budget

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (Center for Policy Research) के फेलो डॉक्टर संतोष हरीश ने कहा कि आने वाले कुछ दिनों के बाद सरकार अपना वार्षिक बजट पेश करेगी। उम्मीद है कि इस साल नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम, घरेलू वायु प्रदूषण और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण को एक विस्‍तृत मसले के तौर लिया जाएगा। पिछले बजट में काफी अच्छे कदम उठाये गए थे। यह अच्‍छी बात है कि वित्त आयोग से नगरीय शासी निकायों को जो अनुदान दिया गया है उसने एयर क्वालिटी परफॉर्मेंस से जोड़ा गया है। इसे किसी और मद में नहीं खर्च किया जा सकता। आने वाले बजट में मैं उम्मीद करता हूं कि नॉन अटेनमेंट शहरों के लिए उल्‍लेखनीय स्रोत तय किए जाएंगे। सर्दियों में वायु गुणवत्‍ता प्रबन्‍धन को लेकर दिल्ली और एनसीआर के लिए एक कमीशन गठित किया गया था। यह एक मील का पत्थर है लेकिन फिर भी यह सवाल है कि सबसे ज्यादा प्रदूषण के समय में इसका गठन क्यों किया गया, वह भी इतनी जल्दबाजी में। हालांकि अभी बहुत से ऐसे पहलू हैं जिनको लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। मुझे उम्मीद है कि 2021 में स्थितियां स्पष्ट होंगी।

क्‍लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने इस मौके पर कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के लिये सरकार की तरफ से विज्ञान आधारित नीतिगत काम किये जा रहे हैं, मगर उनकी प्रभावशीलता की परख होना अभी बाकी है। बेहतर होगा, अगर प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये जमीनी स्‍तर पर भी प्रयास किये जाएं। ऐसा लगता है कि सिविल सोसायटी पिछले कुछ वर्षों से वायु की गुणवत्‍ता की मांग को लेकर आवाज बुलंद कर रही है।

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