किसानों के साथ-साथ अब कृषि मजदूरों के लिए काल बना मोदीराज! खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या में 18% वृद्धि

 


मोदी के ‘नए भारत’ में किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। कहीं पर गृह राज्यमंत्री का बेटा किसानों को अपनी गाड़ी के नीचे रौंदकर मार डाल रहा है, तो कहीं पर किसान खुद आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।

किसानों में भी उन किसानों के हालात और भी खराब है जो खेतिहर मज़दूर हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की नई रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में खेतिहर मजदूरों के आत्महत्या मामलों में 18 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है।


ध्यान देने वाली बात है कि किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्या के कुल मामलों में पिछले एक साल के अंदर 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जबकि केवल खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 में 2019 के मुकाबले किसान और कृषि मजदूरों की आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़े हैं। “टाइम्स ऑफ इंडिया” ने अपनी खबर में बताया है कि वर्ष 2020 में कृषि क्षेत्र में 10,677 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह पूरे देश के आत्महत्या मामलों का 7% है। इसमें से 5579 मामले किसानों की आत्महत्या के हैं, जबकि 5098 मामले खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या के हैं।

वहीं दूसरी तरफ वर्ष 2019 में कुल 10281 कृषि क्षेत्र के लोगों ने आत्महत्या क्यों की इसमें 5957 मामले किसानों की आत्महत्या के हैं, और 4324 मामले खेतिहर मज़दूरो की आत्महत्या के हैं।

देश में पिछले कई महीने से किसान कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के नेता तो इन्हें किसान मानने से भी इंकार कर दे रहे हैं। क्या सरकार किसानों और खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या पर एनसीआरबी की रिपोर्ट को भी सच मानने से इंकार कर देगी? या अपनी नीतियों की कमियों को स्वीकार करते हुए किसानों की समस्याएं सुलझाएगी?मोदी के ‘नए भारत’ में किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। कहीं पर गृह राज्यमंत्री का बेटा किसानों को अपनी गाड़ी के नीचे रौंदकर मार डाल रहा है, तो कहीं पर किसान खुद आत्महत्या करने पर मजबूर हैं।

किसानों में भी उन किसानों के हालात और भी खराब है जो खेतिहर मज़दूर हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की नई रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में खेतिहर मजदूरों के आत्महत्या मामलों में 18 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है।

ध्यान देने वाली बात है कि किसानों और कृषि मजदूरों की आत्महत्या के कुल मामलों में पिछले एक साल के अंदर 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। जबकि केवल खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 में 2019 के मुकाबले किसान और कृषि मजदूरों की आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़े हैं। “टाइम्स ऑफ इंडिया” ने अपनी खबर में बताया है कि वर्ष 2020 में कृषि क्षेत्र में 10,677 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह पूरे देश के आत्महत्या मामलों का 7% है। इसमें से 5579 मामले किसानों की आत्महत्या के हैं, जबकि 5098 मामले खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या के हैं।

वहीं दूसरी तरफ वर्ष 2019 में कुल 10281 कृषि क्षेत्र के लोगों ने आत्महत्या क्यों की इसमें 5957 मामले किसानों की आत्महत्या के हैं, और 4324 मामले खेतिहर मज़दूरो की आत्महत्या के हैं।

देश में पिछले कई महीने से किसान कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के नेता तो इन्हें किसान मानने से भी इंकार कर दे रहे हैं। क्या सरकार किसानों और खेतिहर मज़दूरों की आत्महत्या पर एनसीआरबी की रिपोर्ट को भी सच मानने से इंकार कर देगी? या अपनी नीतियों की कमियों को स्वीकार करते हुए किसानों की समस्याएं सुलझाएगी?

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