पूर्व वित्त सचिव ईएएस सरमा ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखे एक पत्र में कहा है कि विदेशी चंदे को लेकर मूल समस्या से निपटने के बजाय हर्ष मंदर के एनजीओ अमन बिरादरी का उत्पीड़न न्याय का उपहास करना है
.नई दिल्ली: भारत सरकार के पूर्व वित्त सचिव ईएएस सरमा ने कैबिनेट सचिव राजीव गौबा को लिखा है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा हर्ष मंदर के एनजीओ के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की सिफारिश की खबरें ‘न्याय का मजाक’ उड़ाने वाली हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, सरमा ने इन मीडिया रिपोर्ट्स को ‘परेशान करने वाला’ कहा है. उनके पत्र में एनडीटीवी की एक रिपोर्ट का लिंक शामिल है जिसका शीर्षक है ‘केंद्र ने एक्टिविस्ट हर्ष मंदर के एनजीओ के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की’. गृह मंत्रालय के अनाम अधिकारियों के हवाले से कई मीडिया आउटलेट्स द्वारा खबर दी गई है कि ‘विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघनों को लेकर मंदर के एनजीओ के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की गई है.’सरमा ने अपने पत्र में कहा है कि वह गौबा को याद दिलाना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने खुद ही इसी एफसीआरए का कथित उल्लंघन करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के लिए विदेशी स्रोतों से चंदा पाने का रास्ता बनाया था.
उन्होंने लिखा कि साल दर साल दोनों राष्ट्रीय दल विदेशी स्रोतों से चंदा प्राप्त करते हैं, जो 1976 के विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) और उसके बाद 2010 में आए एफसीआरए के प्रावधानों का उल्लंघन है.
इसके बाद उन्होंने अपने और अन्य द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका का जिक्र किया है.
उन्होंने बताया कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और उन्होंने 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक केस दर्ज किया था, जिसमें 28 फरवरी 2014 को फैसला सुनाते हुए अदालत ने गृह मंत्रालय को 6 महीने के भीतर एफसीआरए का उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दलों के खिलाफ उचित कार्रवाई का निर्देश दिया. इसको चुनौती देते हुए भाजपा और कांग्रेस- दोनों ही सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सरमा ने बताया कि यहां विस्तृत जिरह के 2016 में दोनों को अपनी एसएलपी वापस लेनी पड़ी थीं.
सरमा कहते हैं कि तब सरकार को कथित रूप से एफसीआरए का उल्लंघन करने के लिए भाजपा के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी लेकिन असल में हुआ यह कि कानूनों को पूर्वव्यापी तरीके से बदल दिया गया. उन्होंने लिखा:
सरमा ने संशोधनों को विनियमित करने के तरीके को ‘बैक डोर’ से बदलाव करना कहा, जिसने 2016 और 2017 के वित्त अधिनियमों में परिवर्तन को सक्षम बनाया. इसके साथ ही मोदी सरकार ने कंपनी अधिनियम में भी संशोधन किया ताकि निजी कंपनियां राजनीतिक दलों को अधिक दान दें.
इसके बाद सरमा ने अपने पत्र में विवादित चुनावी बॉन्ड का ज़िक्र किया, जिसे लेकर उन्होंने कंपनी चंदे के लिए राजनीतिक दलों के ‘अतृप्त लालच’ की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि इसने भारतीयों को यह जानकारी भी नहीं दी है कि कौन, किस पार्टी को और कैसे फंडिंग कर रहा है.
सरमा ने कहा कि यह प्रक्रिया आम जनता का मजाक उड़ाती है.
सरमा ने कहा कि उन्होंने एनडीए सरकार के शीर्ष प्रतिनिधियों को ‘इसके द्वारा पेश किए गए प्रतिगामी विधायी संशोधनों’ की अनुपयुक्तता और चुनावों की शुचिता पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव के बारे में लिखा है. उन्होंने द वायर पर प्रकाशित एफसीआरए संशोधनों पर उनके स्वयं के लेख का भी ज़िक्र किया है.
इसके बाद उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा चलाए जा रहे अमन बिरादरी ट्रस्ट के बारे में बात की है.
नरेंद्र मोदी सरकार के मुखर आलोचक मंदर के खिलाफ सरकारी कार्रवाई नई नहीं हैं. 2021 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीमों ने दिल्ली के वसंत कुंज में मंदर के घर, अधचिनी में उनके दफ्तर और महरौली के एक बाल गृह, जिसे बनाने में उनके संगठन- सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज ने मदद की थी, पर भी छापा मारा था.
इससे पहले 2020 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मंदर द्वारा स्थापित बाल गृह में वित्तीय और प्रशासनिक, दोनों तरह की अनियमितताओं का पता लगाने का दावा किया था. बाद में, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने चार अलग-अलग सर्वेक्षणों में एनसीपीसीआर द्वारा अदालत को सौंपे गए हलफनामे में किए गए अधिकांश दावों का खंडन किया था.
मंदर के एनजीओ को लेकर सरमा ने अपने पत्र में कहा है:
इसके बाद उन्होंने एनजीओ के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई में विरोधाभास पर चिंता जताई है.
अंत में सरमा ने अपने पत्र में लिखा है कि ‘राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा मिलना भारत के लोकतंत्र के लिए खतरा है.’ उन्होंने लिखा, ‘अब समय आ गया है कि ऐसे डोनेशन पर रोक लगाई जाए. असल में, राजनीतिक दलों द्वारा निजी कंपनियों से चंदा प्राप्त करने का विचार ही अपने आप में प्रतिगामी है और जितनी जल्दी हम इस पर प्रतिबंध लगाते हैं, उतना ही यह हमारे लोकतंत्र के लिए बेहतर होगा.’